दहक रही है ज़िन्दगी...
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ज़िन्दगी के दायरे से भाग रही है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी के हाशिये पर रुकी रही है ज़िन्दगी !
बेवजह वक़्त से हाथापाई होती रही ताउम्र
झंझावतों में उलझ कर गुज़र रही है ज़िन्दगी !
गुलमोहर की चाह में पतझड़ से हो गई यारी
रफ़्ता-रफ़्ता उम्र गिरी ठूँठ हो रही है ज़िन्दगी !
ख़्वाब और फ़र्ज़ का भला मिलन यूँ होता कैसे
ज़मीं मयस्सर नहीं आस्मां माँग रही है ज़िन्दगी !
सब कहते उजाले ओढ़ के रह अपनी मांद में
अपनी ही आग से लिपट दहक रही है ज़िन्दगी !
- जेन्नी शबनम (4. 4. 2016)
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