सोमवार, 25 मार्च 2024

773. रंगों की झोली (20 हाइकु)

रंगों की झोली 

***

1.
विजयी भव
होली का आशीर्वाद
हर माँ देती।

2.
माँ-बाबा पास
रॉकेट से भेजती
रंगों की झोली!

3.
जम के खेलो
प्राकृतिक गुलाल
न हो बीमार।

4.
गेंदा-पलाश
बनके होली रंग
रहे हुलस।

5.
फगुआ गीत
मौसम में गूँजता
मन झूमता।

6.
होली का रंग
मन पे चढ़ा गाढ़ा
अपनों संग।

7.
होली त्योहार
परिवार जो साथ
फैला उल्लास।

8.
अम्मा ग़रीब
पिचकारी है रूठी
बच्चे उदास।

9.
रंग-गुलाल
नैहर न पीहर
किसको भेजूँ!

10.
फगुआ रंग
जाने मन की पीर
न हो अधीर।

11.
होली है आई
न रंग, न मिठाई
नहीं कमाई।

12.
फगुआ गाती
हवा हुई रंगीन
रंग उड़ाती।

13.
होली रंगीन
सबको रंगकर
ठट्ठा करती।

14.
होली के यार
रंग व पकवान
मिलके बाँटो।

15.
होली की मस्ती
भूलो अपनी हस्ती
रँग दो बस्ती।

16.
बसन्ती हवा
झूमती मतवाली
रंग लगाती।

17.
पलाश रंग
गहरा निखरता
प्यार का रंग।

18.
मन से खेली
फगुआ वाली होली
पिया की हो ली।

19.
रंग बरसे
मनवा है तरसे
पी परदेस।

20.
पराया घर
रंगीन हुआ तन
भीगा है मन।

-जेन्नी शबनम (25.3.24)
__________________ 

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

772. स्त्री जानती है

स्त्री जानती है 

***

उलझनें मिलती हैं, पर कम उलझती है 
स्त्री ये जानती है, स्त्री सब समझती है 
कब कहाँ कितना बोलना है
कब कहाँ कितना छुपाना है
क्या दिल में दफ़्न करना है 
क्या दुनिया को कहना है 
बेबाक़ बातें स्त्री नहीं कर सकती
मन की हर बात नहीं कह सकती
लग जाएँगे बेहयाई के इल्ज़ाम 
हो जाएगी अपने ही घर में बदनाम
जान चली जाए पर मन खोल सकती नहीं  
झूठ कहती नहीं, सच अक्सर बोल सकती नहीं  
उम्र बीत जाए पर मनचाहा नहीं कर सकती
फूल उगा सकती है, पर तितलियाँ नहीं पकड़ सकती 
अपने मन की बातें अपने मन तक
अपने दुख अपने एहसास अपने तक
रिश्ते समेटते-समेटते ख़ुद बिखरती है
कोई नहीं समझता स्त्री कितना टूटती है, मरती है 
हज़ारों शोक, मगर स्त्री के आँसू नापसन्द हैं
हँसती-खिलखिलाती स्त्री सबकी पसन्द है
जन्म से मिली इस विरासत को ढोना है
स्त्री को इन्सान नहीं केवल स्त्री होना है 
और स्त्री की स्त्री होने की यह अकथ्य पीड़ा है।

-जेन्नी शबनम (8.3.2024)
(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)
____________________