सोमवार, 30 जनवरी 2023

757. मम्मी (मम्मी की दूसरी पुण्यतिथि पर)

मम्मी 
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जीवन का दस्तूर   
सबको निभाना होता है   
मरने तक जीना होता है।   
तुम जीवन जीती रही   
संघर्षों से विचलित होती रही   
बच्चों के भविष्य के सपने   
तुम्हारे हर दर्द पर विजयी होते रहे   
पाई-पाई जोड़कर   
हर सपनों को पालती रही   
व्यंग्यबाण से खुदे हर ज़ख़्म पर   
बच्चों की खुशियों के मलहम लगाती रही।   
जब आराम का समय आया   
संघर्षों से विराम का समय आया   
तुम्हारे सपनों को किसी की नज़र लग गई   
तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार फिर बिखर गई   
तुम रोती रही, सिसकती रही   
अपनी क़िस्मत को कोसती रही।   
अपनी संतान की वेदना से   
तुम्हारा मन छिलता रहा   
उन ज़ख़्मों से तुम्हारा तन-मन भरता रहा   
अशक्त तन पर हजारों टन की पीड़ा   
घायल मन पर लाखों टन की व्यथा   
सह न सकी यह बोझ   
अंततः तुम हार गई   
संसार से विदा हो गई   
सभी दुःख से मुक्त हो गई।   
पापा तो बचपन में गुज़र चुके थे   
अब मम्मी भी चली गई   
मुझे अनाथ कर गई   
अब किससे कहूँ कुछ भी   
कहाँ जाऊँ मैं?   
तुम थी तो एक कोई घर था   
जिसे कह सकती थी अपना   
जब चाहे आ सकती थी   
चाहे तो जीवन बिता सकती थी   
कोई न कहता-   
निकल जाओ   
इस घर से बाहर जाओ   
तुम्हारी कमाई का नहीं है   
यह घर तुम्हारा नहीं है।   
मेरी हारी ज़िन्दगी को एक भरोसा था   
मेरी मम्मी है न   
पर अब?   
तुमसे यह तन, तुम-सा यह तन   
अब तुम्हारी तरह हार रहा है   
मेरा जीवन अब मुझसे भाग रहा है।   
तुम्हारा घर अब भी मेरा है   
तुम्हारा दिया अब भी एक ओसारा है   
पर तुम नहीं हो, कहीं कोई नहीं है   
तुम्हारी बेटी का अब कुछ नहीं है   
वह सदा के लिए कंगाल हो गई है।

- जेन्नी शबनम (30. 1. 2023)
(मम्मी की दूसरी पुण्यतिथि पर)
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सोमवार, 23 जनवरी 2023

756. पुल

पुल 

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पुल तो ध्वस्त हो गया   
जिससे दोनों पाटों को जोड़कर   
पार कर जाते थे अथाह खाई   
हाँ, एक पतली सी डोरी छोड़ दी थी   
शायद किसी मोड़ पर वापसी हो   
तो लौटना मुमकिन हो सके   
यह याद रखते हुए   
कि यह अन्तिम   
अस्त्र, शस्त्र और मन्त्र है   
जीवन के प्रवाह की   
यह डोरी अगर टूटी या छूटी   
फिर उम्र और वक़्त की सीमा कुछ भी हो   
जीवन एक पार ही रहेगा   
तमाम अंतर्द्वंद्वों को समझते जानते हुए   
अब कोई नया पुल न बनेगा   
न मरम्मत की जाएगी   
न कोई सूत जोड़ी या छोड़ी जाएगी।

- जेन्नी शबनम (23. 1. 23)
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मंगलवार, 3 जनवरी 2023

755. नार्सिसिस्ट

नार्सिसिस्ट 

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उसका प्यार उसकी नफ़रत   
उसका आरोप उसका प्रत्यारोप   
उसकी प्रताड़ना, शिकायत   
उसकी दया, क्षमा   
उसका परिहास, उपहास   
उसके बन्धन, क्रन्दन   
उसका सत्य, झूठ 
कुछ समझ नहीं आता।  
यह कैसा चरित्र है   
जो दूसरों के आँसू में हँसी तलाशता है   
दूसरों को नीचा गिराकर दम्भ से हुँकारता है।    
वह मानता है-   
वह सर्वश्रेष्ठ है 
ईश्वर की संतान है   
चाँद-तारों धरती-आकाश   
पूरे विश्व की पहचान है   
उससे बेहतर कोई नहीं,   
अगर उसे कोई बेहतर लग गया   
तो उसके सम्मान पर वह इतनी चोट करेगा   
कि दूसरा आत्मसमर्पण कर दे   
या आत्मविश्वास खो दे   
या हीनता का शिकार होकर    
उसकी तरह बीमार हो जाए   
या पर-कटे पंछी की तरह छटपटाए   
और इन सबसे उसकी बाँछें खिल जाती हैं   
उसे मिलती है बेइंतहा ख़ुशी।   
यह आत्ममुग्धता क्या है?   
क्या इसका कोई ईलाज है?   
शायद नहीं!   
नार्सिसिस्ट पर दया की जाए   
या जान बचाकर पलायन करना उचित है?   
दिमाग शून्य हो जाता है   
यह कैसा चक्रव्यूह है   
जिससे बाहर आने की राहें तो हैं   
मगर इतनी कँटीली   
कि तन-मन दोनों छलनी होंगे   
न जीवन जीते बनेगा   
न मरने की हिम्मत बचेगी   
या अल्लाह!   
क्यों बनाता है तू ऐसा मानव?   
ये नार्सिसिस्ट   
न किसी से प्रेम कर सकते   
न किसी की हत्या   
जीवन भर दूसरों को तड़पाकर   
आनन्दित होते हैं।   
मुक्ति का कोई उपाय नहीं। 

- जेन्नी शबनम 
(1. 1. 2023)
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