हम अब भी जीते हैं
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इश्क की हद, पूछते हैं आप, बारहा हमसे
क्या पता, हम तो हर सरहदों के पार, जीते हैं ।
इश्क की रस्म से अनजान, आप भी तो नहीं
क्या कहें, हम कहाँ कभी ख्वाबों में, जीते हैं ।
इश्क की इन्तेहा, देख लीजिए आप भी
क्या हुआ गर, जो हम फिर भी, जीते हैं ।
इश्क में मिट जाने का, 'शब' और क्या अंदाज़ हो
क्या ये कम नहीं, कि हम, अब भी जीते हैं ।
- जेन्नी शबनम (मार्च 19, 2009)
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इश्क की हद, पूछते हैं आप, बारहा हमसे
क्या पता, हम तो हर सरहदों के पार, जीते हैं ।
इश्क की रस्म से अनजान, आप भी तो नहीं
क्या कहें, हम कहाँ कभी ख्वाबों में, जीते हैं ।
इश्क की इन्तेहा, देख लीजिए आप भी
क्या हुआ गर, जो हम फिर भी, जीते हैं ।
इश्क में मिट जाने का, 'शब' और क्या अंदाज़ हो
क्या ये कम नहीं, कि हम, अब भी जीते हैं ।
- जेन्नी शबनम (मार्च 19, 2009)
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