क्षणिक बहार
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आज वह खूब चहक रही है
मन ही मन में बहक रही है
साल भर से जो वो कच्ची थी
उस का दिन है तो पक रही है।
आज वह निरीह नहीं सबल है
आज वह दुखी नहीं मगन है
आज उस के नाम धरती है
आज उस का ही ये गगन है।
जहाँ देखो सब उसे बुला रहे हैं
हर महफ़िल में उसे सजा रहे हैं
किसी ने क्या खूब वरदान दिया है
एक पखवारा उसके नाम किया है।
आज सज धज के निकलेगी
आज बहुरिया-सी दमकेगी
हर तरफ होगी जय जयकार
हर कोई दिखाए अपना प्यार
हर किसी को इस का ख्याल
परम्परा मनेगी सालों साल।
पखवारा बीतने पर मलीन होगी
धीरे-धीरे फिर गमगीन होगी
मंच पर आज जो बैठी है
फर्श पर तब आसीन होगी
क्षणिक बहार आज आई है
फिर साल भर अँधेरी रात होगी।
हर साल आता है यह त्योहार
एक पखवारे का जश्ने बहार
उस हिन्दी की परवाह किसे है
राजभाषा तक सिकोड़ा जिसे है
जो भी अब संगी साथी इसके हैं
सालों भर साथ-साथ चलते हैं।
भले अंग्रेजी सदा अपमान करे
हिन्दी का साथ हमसे न छूटे
प्रण लो हिन्दी बनेगी राष्ट्रभाषा
यह है हमारा अधिकार और भाषा
हिन्दी को हम से है बस यही आशा
हम देंगे नया जीवन नयी परिभाषा।
- जेन्नी शबनम (14. 9. 2019)
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