'शब' की मुराद
('ज़ख़्म' फिल्म से प्रेरित नज़्म)
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'शब' जब 'शव' बन जाए, उसको कुछ वक़्त रहने देना
बेदस्तूर सही, सहर होने तक ठहरने देना।
उम्र गुज़ारी है 'शब' ने अँधेरों में
रोशनी की एक नज़र पड़ने देना।
('ज़ख़्म' फिल्म से प्रेरित नज़्म)
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'शब' जब 'शव' बन जाए, उसको कुछ वक़्त रहने देना
बेदस्तूर सही, सहर होने तक ठहरने देना।
उम्र गुज़ारी है 'शब' ने अँधेरों में
रोशनी की एक नज़र पड़ने देना।
डरती है बहुत 'शब' आग में जलने से
दुनियावालों, उसे दफ़न करने देना।
मज़हब का सवाल जो उठने लगे तो
सबको वसीयत 'शब' की पढ़ने देना।
ढक देना माँग की सिंदूरी लाली को
वजह-ए-वहशत 'शब' को न बनने देना।
जगह नहीं दे मज़हबी जब दफ़नाने को
घर में अपने, 'शब' की क़ब्र बनने देना।
तमाम ज़िन्दगी बसर हुई तन्हा 'शब' की
जश्न भारी औ मज़मा भी लगने देना।
अश्क़ नहीं फूलों से सजाना 'शब' को
'शब' के मज़ार को कभी न ढहने देना।
'शब' की मुराद, पूरी करना मेरे हमदम
'शब' के लिए, कोई मर्सिया न पढ़ने देना।
- जेन्नी शबनम (नवम्बर, 1998)
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