चुप (क्षणिका)
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एक सब्र मन का
उतर गया है आँखों पर,
एक सब्र बदन का
ओढ़ लिया है ज़िन्दगी पर,
एक चुप पी ली है
अपने होंठों से,
एक चुप चुरा ली है
अपनी ज़िन्दगी से ।
- जेन्नी शबनम (फ़रवरी 25, 2009)
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एक सब्र मन का
उतर गया है आँखों पर,
एक सब्र बदन का
ओढ़ लिया है ज़िन्दगी पर,
एक चुप पी ली है
अपने होंठों से,
एक चुप चुरा ली है
अपनी ज़िन्दगी से ।
- जेन्नी शबनम (फ़रवरी 25, 2009)
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