यक़ीन
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मुझे यक़ीन है  
एक दिन बंद दरवाज़ों से निकलेगी 
सुबह की किरणों का आवभगत करेगी 
रात की चाँदनी में नहाएगी, कोई धुन गुनगुनाएगी 
सारे अल्फ़ाज़ को घर में बंद करके 
सपनों की अनुभूतियों से लिपटी 
ज़िन्दगी मुस्कुराती हुई बेपरवाह घूमेगी  
हाँ! मुझे यक़ीन है, ज़िन्दगी फिर से जिएगी। 
- जेन्नी शबनम (16. 11. 2017) 
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