चुपचाप सो जाऊँगी
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इक रोज़ तेरे काँधे पे
यूँ चुपचाप सो जाऊँगी
ज्यूँ मेरा हो वस्ल आख़िरी
और जहाँ से हो रुख़सती।
जो कह न पाए तुम कभी
चुपके से दो बोल कह देना
तरसती हुई मेरी आँखें में
शबनम से मोती भर देना।
ख़फा नहीं तक़दीर से अब
आख़िरी दम तुझे देख लिया
तुम मेरे नहीं मैं तेरी रही
ज़िन्दगी ने दिया, बहुत दिया।
न कहना है कि भूल जाओ
न कहूँगी कि याद रखना
तेरी मर्ज़ी से थी चलती रही
जो तेरा फ़ैसला वो मेरा फ़ैसला।
- जेन्नी शबनम (22. 11. 2011)
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इक रोज़ तेरे काँधे पे
यूँ चुपचाप सो जाऊँगी
ज्यूँ मेरा हो वस्ल आख़िरी
और जहाँ से हो रुख़सती।
जो कह न पाए तुम कभी
चुपके से दो बोल कह देना
तरसती हुई मेरी आँखें में
शबनम से मोती भर देना।
ख़फा नहीं तक़दीर से अब
आख़िरी दम तुझे देख लिया
तुम मेरे नहीं मैं तेरी रही
ज़िन्दगी ने दिया, बहुत दिया।
न कहना है कि भूल जाओ
न कहूँगी कि याद रखना
तेरी मर्ज़ी से थी चलती रही
जो तेरा फ़ैसला वो मेरा फ़ैसला।
- जेन्नी शबनम (22. 11. 2011)
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22 टिप्पणियां:
तुम मेरे नहीं मैं तेरी रही
ज़िन्दगी ने दिया, बहुत दिया !
आह!
अप्रतिम अभिव्यक्ति!
ह्रदय से कही गयी बात है बेहतरीन बधाई
आज तो आपने कुछ कहने लायक ही नही छोडा …………हर दिल की बात को शब्द दे दिये।
bahut achchhi soch liye hue kavita...abhar
न कहना है कि भूल जाओ
न कहूँगी कि याद रखना
तेरी मर्ज़ी से थी चलती रही
जो तेरा फ़ैसला वो मेरा फ़ैसला ! bhaut hi acchi rachna.....
जो कह न पाए तुम कभी
चुपके से दो बोल कह देना
तरसती हुई मेरी आँखें में
शबनम से मोती भर देना !
अदभुत,भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति है,आपकी.
दिल के दर्द का चुपचाप ही बयां करती.
वाकई,आँखों में शबनम से मोती भरती.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार,जेन्नी जी.
wah....kya baat hai.
परिस्थिति के अनुसार खुद को ढ़ालना भी एक कला है ..
प्यार की गहराई का अनुमान लगाना कठिन है , उसे शब्दों में बाँधना और भी कठिन । इस कठिन कार्य को सहजता से सम्पन्न करना जेन्नी जी को खूब आता है । हृदय को द्रवित करने वाली कविता । ये पंक्तियाँ तो निरुत्तर कर देती हैं-
ख़फा नहीं तकदीर से अब
आख़िरी दम तुझे देख लिया
तुम मेरे नहीं मैं तेरी रही
ज़िन्दगी ने दिया, बहुत दिया !
न कहना है कि भूल जाओ
न कहूँगी कि याद रखना
तेरी मर्ज़ी से थी चलती रही
जो तेरा फ़ैसला वो मेरा फ़ैसला
ADBHUT PREM-SAMARPAN.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
dcgpthravikar.blogspot.com
यूँ ही इक दिन मर जायेंगे हम !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
गहरी और उत्कृष्ट रचना...
सादर...
सुन्दर बेहतरीन भाव.......
इक रोज तेरे कांधे पे
यूँ चुपचाप सो जाऊँगी
ज्यूँ मेरा हो वस्ल आखिरी
और जहाँ से हो रुखसती|
बहुत सुंदर कविता..बधाई....
नई पोस्ट में स्वागत है
bahut achi tarah llikhe ahsaas
न कहना है कि भूल जाओ
न कहूँगी कि याद रखना
तेरी मर्ज़ी से थी चलती रही
जो तेरा फ़ैसला वो मेरा फ़ैसला
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जेन्नी जी,मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है.
तुम मेरे नहीं मैं तेरी रही
ज़िन्दगी ने दिया, बहुत दिया !
......बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं.....
इक रोज तेरे कांधे पे
यूँ चुपचाप सो जाऊँगी
ज्यूँ मेरा हो वस्ल आखिरी
और जहाँ से हो रुखसती|
बहुत सुंदर कविता..बधाई.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।
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