रविवार, 8 मार्च 2020

648. पूरक

पूरक 

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ओ साथी! 
अपना वजूद तलाशो, दूसरों का नष्ट न करो   
एक ही तराजू से, हम सभी को न तौलो   
जीवन जो नेमत है, हम सभी के लिए है   
इससे असहमत न होओ।   
मुमकिन है, युगों की प्रताड़ना से आहत तुम   
प्रतिशोध चाहती हो   
पर यह प्रतिकार   
एक नई त्रासदी को जन्म देगा   
सामाजिक संरचनाएँ डगमगा जाएँगी   
और यह संसार के लिए मुनासिब नहीं।   
तुम्हारे तर्क उचित नहीं   
तुम पूरी जाति से बदला कैसे ले सकती हो?   
जिसने पीड़ा दी उसे दंड दो   
न कि सम्पूर्ण जाति को   
जीवन और जीवन की प्रक्रिया, हमारे हाथ नहीं   
तुम समझो इस बात को।   
हाँ यह सच है, परम्पराओं से पार जाना   
बेहद कठिन था हमारे लिए   
हम गुनहगार हैं, तुम सभी के दुःख के लिए   
पर युग बदल रहा है   
समय ने पहचान दी है तुम्हें   
पर तुम अपना आत्मविश्वास खो रही हो   
बदला लेने पर आतुर हो   
पर किससे?   
कभी सोचा है तुमने   
हम तुम्हारे ही अपने हैं   
तुमसे ही उत्पन्न हुए हैं   
हमारी रगों में तुम्हारा ही रक्त बहता है   
जीवन तुम्हारे बिना नहीं चलता है।   
तुम समझो, दूसरों के अपराध के कारण   
हम सभी अपराधी नहीं हैं   
हम भी दुखी होतें हैं   
जब कोई मानव से दानव बन जाता है   
हम भी असहाय महसूस करते हैं   
उन जैसे पापियों से   
जो तुम्हें दोजख में धकेलता है।   
हाँ हम जानते हैं   
घोषित कानून तुम्हारे साथ है   
पर अघोषित सज़ा हम सब भुगतते हैं   
महज़ इस कारण कि हम पुरूष हैं।  
तुम्हें भी इसे बदलना होगा   
हमें भी यह समझना होगा   
कुछ हैवानों के कारण हम सभी परेशान हैं   
कुछ हममें भी राक्षस है, कुछ तुममें भी राक्षसी है   
हमें परखना होगा, हम सब को चेतना होगा   
हमें एक दूसरे का साथ देना होगा।   
हमें चलना है, हमें साथ जीना है   
हम पूरक हैं   
ओ साथी!   
आओ, हम क़दम से क़दम मिला कर चलें।   

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2020)  
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर)
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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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होलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635)    पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Rohitas Ghorela ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।
विरोधी भावना हमारे मानव जाति का नाश ही है।
मिलकर ही कई रचना रची जा सकती है। सुंदर।
नई पोस्ट - कविता २

anita _sudhir ने कहा…


पुरूषों से बराबरी का
अधिकार माँगती
नारी ,स्वयं को
क्यों कम आँकती
नवजीवन का सृजन
कर ,वो है
श्रेष्ठ अनुपम कृति ।

आ0 मेरे मन की बात कह दी ,
बहुत सुंदर

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर