गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

29. नफ़रत के बीज

नफ़रत के बीज

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नफ़रत के बड़े-बड़े पेड़ उगे हैं हर कहीं
इंसान के अलग-अलग रूपों में। 
ये बीज हमने कब बोये?

सोचती हूँ -
ख़ुदा ने ज़मीन पर आदम और हव्वा को भेजा
उनके वर्जित फल खाने से इंसान जन्मा,
वह वर्जित फल
उन्होंने भूख के लिए खाया होगा
लड़कर आधा-आधा
न कि मनचाही संतान के लिए
प्रेम से आधा-आधा। 

शायद उनके बीच जब तीसरा आया हो
उन्हें नफ़रत हो गई हो उससे  
और इसी नफ़रत के कारण 
इंसान के चेतन-अचेतन मन में बस गया है -
ईर्ष्या, द्वेष, आधिपत्य, बदला, दुश्मनी,
हत्या, दुराचार, घृणा, क्रोध, प्रतिशोध। 

नफ़रत की ही इंतिहा है
जब इसकी हद इंसानी रिश्तों को पारकर
सियासत, मुल्कों, क़ौमों तक जा पहुँची। 
पहले बीज से अनगिनत पौधे बनते गए
हर युग में नफ़रत के पेड़ फैलते गए। 

सतयुग, द्वापर, त्रेता हो या कलियुग
ऋषिमुनि-दुराचारी, राजा-रंक, देवी-देवता
सुर-असुर, राम-रावण, कृष्ण-कंस, कौरव-पांडव
से लेकर आज तक का
जाति, वर्ण और क़ौमी विभाजन
औरत मर्द का मानसिक विभाजन
दैविक शक्तियों से लेकर हथियार
और अब परमाणु विभीषिका। 

हम कैसे कहें
कि नफ़रत हमने आज पैदा की। 
हमने सदियों युगों से नफ़रत के बीज को
पौधों से पेड़ बनाया
उन्हें जीवित रहने और जड़ फैलाने में
सहूलियत और मदद दी,
जबकि हमें, उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना था। 

सोचती हूँ -
ख़ुदा ने आदम और हव्वा में
पहले चेतना दी होती
और उस वर्जित फल को खिलाकर
मोहब्बत भरे इंसान से संसार बसाया होता। 

सोचती हूँ
काश! ऐसा होता!

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2008)
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1 टिप्पणी:

Ashk ने कहा…

Manveeya sambanhon mein martee garmahat,apnatva ke kam hote bhavon kee peedaa ko jeene valee samvedansheel kavyitree kee soch prashansneeya hai.
Kavita sandesh detee hai.
Badhai !
---Ashok Lav