दुआ मेरी अता कर
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अक्सर सोचती रही हूँ अपनी मात पर
क्यों हर दोस्त मुझको दग़ा दे जाता है,
इतनी ज़ालिम क्यों हो गई है ये दुनिया
क्यों दोस्त दुश्मनों-सा घात दे जाता है।
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अक्सर सोचती रही हूँ अपनी मात पर
क्यों हर दोस्त मुझको दग़ा दे जाता है,
इतनी ज़ालिम क्यों हो गई है ये दुनिया
क्यों दोस्त दुश्मनों-सा घात दे जाता है।
कौन बदल सका है कब अपना नसीब
ग़र ख़ुदा मिले भी तो अचरज क्या है,
किसी शबरी को मिलता नहीं अब राम
आह! प्रेम की वो सीरत जाने क्या है।
क़ीमत देकर ख़रीद पाती ग़र कोई पल
जान दे दूँ कुछ और बेशकीमती नहीं है,
दे दे सुकून की एक साँस, मेरे अल्लाह
चाहे आख़िरी ही हो कोई ग़म नहीं है।
मालूम नहीं कब तक है जीना यूँ बेसबब
या रब! मुक़र्रर अब तारीख़ आख़िरी कर,
'शब' आज़ार, रंज दुनिया का दूर हो कैसे
ऐ ख़ुदा! फ़ना हो जाऊँ दुआ मेरी अता कर।
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आज़ार - दुखी
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- जेन्नी शबनम (16, 12, 2009)
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dua meri ataa kar
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aksar sochti rahi hun apni maat par
kyon har dost mujhko dagaa de jata hai,
itni zaalim kyun ho gayee hai ye duniya
kyon dost dushmanon-saa ghaat de jata hai.
kaun badal sakaa hai kab apna naseeb
gar khuda mile bhi to achraj kya hai,
kisi shabri ko milta nahin ab raam
aah! prem kee wo seerat jaane kya hai.
keemat de kar khareed paati gar koi pal
jaan de dun kuchh aur beshkeemati nahin hai,
de de sukoon ki ek saans, mere allah
chaahe aakhiri hin ho koi gam nahin hai.
maaloom nahin kab tak hai jeena yun besabab
yaa rab! mukarrar ab taareekh aakhiri kar,
'shab' aazaar, ranj duniya ka door ho kaise
ae khuda! fana ho jaaun dua meri ataa kar.
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aazaar - dukhi
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- Jenny Shabnam (16. 12. 2009)
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aksar sochti rahi hun apni maat par
kyon har dost mujhko dagaa de jata hai,
itni zaalim kyun ho gayee hai ye duniya
kyon dost dushmanon-saa ghaat de jata hai.
kaun badal sakaa hai kab apna naseeb
gar khuda mile bhi to achraj kya hai,
kisi shabri ko milta nahin ab raam
aah! prem kee wo seerat jaane kya hai.
keemat de kar khareed paati gar koi pal
jaan de dun kuchh aur beshkeemati nahin hai,
de de sukoon ki ek saans, mere allah
chaahe aakhiri hin ho koi gam nahin hai.
maaloom nahin kab tak hai jeena yun besabab
yaa rab! mukarrar ab taareekh aakhiri kar,
'shab' aazaar, ranj duniya ka door ho kaise
ae khuda! fana ho jaaun dua meri ataa kar.
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aazaar - dukhi
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- Jenny Shabnam (16. 12. 2009)
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7 टिप्पणियां:
अक्सर सोचती रही हूँ अपनी मात पर
क्यूँ हर दोस्त मुझको दगा दे जाता है,
इतनी ज़ालिम क्यूँ हो गई है ये दुनिया
क्यूँ दोस्त दुश्मनों सा घात दे जाता है !
इन शुरूआती पंक्तियों में जो प्रश्न जो विद्यमान है वो हर जगह सामान नही रहता......
परन्तु अगर भाव को ध्यान में रखकर आपकी इस रचना का मूल्यांकन किया जाये......
तो लाजवाब लिखा गया है.......
कुछ दोस्तों के बारे में मैंने भी लिखा था उसका लिंक खोज के आपको दे रहा हूँ समय मिलेगा तो जरूर पढ़ लीजियेगा.....
http://lokendra-vikram.blogspot.com/2009/04/blog-post_25.html
लोकेन्द्र जी,
बिल्कुल सही कहा आपने, हर स्थिति में ये उचित नहीं है, और न हर दोस्तों केलिए| दोस्त होते हीं हैं जिनसे जीवन को सुकून मिलता है और दोस्त हीं ऐसे होते जिनसे डर भी होता| क्यूंकि दुश्मन के घात का तो अंदाजा होता लेकिन दोस्त अगर विश्वासघात करें तो वो क्या करेंगे ये अंदाज़ा भी नहीं लगता| बस यही कुछ भाव हैं इन पंक्तियों में|
मेरी रचना तक आने और सराहने केलिए बहुत शुक्रिया आपका|
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
बेहतरीन पंक्तियां हैं, गहरे दर्द हैं....
मालुम नहीं कब तक है जीना यूँ बेसबब
या रब मुक़र्रर अब आख़िरी तारीख कर,
''शब'' आज़ार रंज दुनिया का दूर हो कैसे
ऐ ख़ुदा फ़ना हो जाऊं दुआ मेरी अता कर !
इसके लिए तो मिर्जा गालिब को याद करना पड़ेगा..
इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
बेहतरीन पंक्तियां हैं, गहरे दर्द हैं....
मालुम नहीं कब तक है जीना यूँ बेसबब
या रब मुक़र्रर अब आख़िरी तारीख कर,
''शब'' आज़ार रंज दुनिया का दूर हो कैसे
ऐ ख़ुदा फ़ना हो जाऊं दुआ मेरी अता कर !
इसके लिए तो मिर्जा गालिब को याद करना पड़ेगा..
इशरत-ए-कतरा है दरिया में फना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
बहुत बढ़िया जेन्नी जी....
बड़े पेचदा रिश्ते हैं दोस्ती के....
सस्नेह.
अनु
इस लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप रहस्यों के बारे में जान सकते है
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