क्यों दिख रही ज़िन्दगी
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मेरे सफ़र की दास्तान न पूछ, ऐ हमदर्द
कम्बख्त! हर बार ज़िन्दगी छूट जाती है,
पुरज़ोर जब भी पकड़ती हूँ, पाँव ज़मीन के
उफ़! किस अदा से किनारा कर जाती है।
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मेरे सफ़र की दास्तान न पूछ, ऐ हमदर्द
कम्बख्त! हर बार ज़िन्दगी छूट जाती है,
पुरज़ोर जब भी पकड़ती हूँ, पाँव ज़मीन के
उफ़! किस अदा से किनारा कर जाती है।
शफ़क़ के उस पार, दिख रही कुछ रौशनी
एक दीये की लौ है, क्यों दिख रही ज़िन्दगी?
कौन जला रहा, यूँ अपने दिल को शबोरोज़
मुझे पुकारा नहीं, क्यों बढ़ी जा रही ज़िन्दगी?
बस एक बार पलट कर आ भी जा, ऐ वक़्त
मुमकिन है कि मेरी आरज़ू, किसी को नहीं,
शायद हो कोई गुंजाइश, इन अँधेरों में 'शब'
कुछ चिरागों की ख़्वाहिशें, बुझी भी तो नहीं।
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शफ़क़ - क्षितिज पर भोर या शाम की लाली
शबोरोज़ - रात-दिन/ लगातार
शबोरोज़ - रात-दिन/ लगातार
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- जेन्नी शबनम (14. 12. 2009)
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- जेन्नी शबनम (14. 12. 2009)
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kyon dikh rahi zindagi
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mere safar ki daastaan na puchh, ae humdard
kambakht! har baar zindagi chhoot jaati hai,
purzor jab bhi pakadti hun, paanw zameen ke
uf! kis adaa se kinaara kar jaati hai.
shafaq ke us paar, dikh rahi kuchh raushani
ek diye kee lau hai, kyon dikh rahi zindagi ?
kaun jalaa rahaa, yun apne dil ko shaboroz
mujhe pukaara nahin, kyon badhi jaa rahi zindagi ?
bas ek baar palat kar aa bhi jaa, ae waqt
mumkin hai ki meri aarzoo, kisi ko nahin.
shaayad ho koi gunjaaish, in andheron mein 'shab'
kuchh chiraagon kee khwaahishein, bujhi bhi to nahin.
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shafaq - kshitij par bhor ya shaam kee laalee
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mere safar ki daastaan na puchh, ae humdard
kambakht! har baar zindagi chhoot jaati hai,
purzor jab bhi pakadti hun, paanw zameen ke
uf! kis adaa se kinaara kar jaati hai.
shafaq ke us paar, dikh rahi kuchh raushani
ek diye kee lau hai, kyon dikh rahi zindagi ?
kaun jalaa rahaa, yun apne dil ko shaboroz
mujhe pukaara nahin, kyon badhi jaa rahi zindagi ?
bas ek baar palat kar aa bhi jaa, ae waqt
mumkin hai ki meri aarzoo, kisi ko nahin.
shaayad ho koi gunjaaish, in andheron mein 'shab'
kuchh chiraagon kee khwaahishein, bujhi bhi to nahin.
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shafaq - kshitij par bhor ya shaam kee laalee
shaboroz - raat-din/ lagaataar
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- Jenny Shabnam (14. 12. 2009)
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- Jenny Shabnam (14. 12. 2009)
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6 टिप्पणियां:
दिलचस्प, अनुभवों की सांद्रता।
वाह वाह सुभान अल्लाह क्या बात है जेनी जी ,
सभी सुंदर अति सुंदर ....
मेरे सफ़र की दास्तान न पूछ, ऐ हमदर्द
कम्बख्त...हर बार ज़िन्दगी छूट जाती है !
पुरज़ोर जब भी पकड़ती हूँ, पाँव ज़मीन के
उफ्फ़...किस अदा से किनारा कर जाती है !
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बहुत ही बढ़िया
बहुत ही प्यारा लिखा है।
मेरे सफ़र की दास्तान न पूछ, ऐ हमदर्द
कम्बख्त...हर बार ज़िन्दगी छूट जाती है !
पुरज़ोर जब भी पकड़ती हूँ, पाँव ज़मीन के
उफ्फ़...किस अदा से किनारा कर जाती है !
“ जब कोई मस्तानी सी कलम दुख्ती सी कसकों और दिखती सी आपदाओं के बीच
अपने जीवन के अनन्त बैभव को अनोखे अन्होनेपन कि भाशा देता है तो अभिव्यक्ति स्वयं प्रस्फ़ुटित हो जाती है ।
मै इससे अधिक शायद कुछ कहने कि स्थिति में नही हूं।
मेरे सफ़र की दास्तान न पूछ, ऐ हमदर्द
कम्बख्त...हर बार ज़िन्दगी छूट जाती है !
पुरज़ोर जब भी पकड़ती हूँ, पाँव ज़मीन के
उफ्फ़...किस अदा से किनारा कर जाती है !
बहुत ही खूबसूरती से आपने शब्दों को पिरोये हैं अपने अहसास के धागे में...
दिल में कहीं ये सबकुछ बैठता सा लगा है...
धन्यवाद...
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