रविवार, 17 जनवरी 2010

116. मेरा मन / mera mann

मेरा मन

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हर राह पर बैठा एक साया
जाने किसको ढूँढ़ता है मन
रोशनी मिली ही कब थी कभी
क्यों अँधियारों से डरता है मन  

अंतहीन संघर्ष पर विफल ज़िन्दगी
कितना जोख़िम और उठाए ये मन
क्यों मिली साँसों की डोर लम्बी इतनी
ज़िन्दगी के बंधन से अब उब गया ये मन  

आज फिर इंकार है मुझे ख़ुदा के वजूद से
बताओ और कितना ख़िदमत करे मेरा मन
थक गया आज ख़ुदा भी करके अपनी जादूगरी
तक़दीर के फ़रेबों से घबराके थक गया मेरा मन  

- जेन्नी शबनम (15. 1. 2010)
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mera mann

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har raah par baitha ek saaya
jaane kisko dhoondhta hai mann
raushni mili hi kab thee kabhi
kyon andhiyaaron se darta hai mann.

antheen sangharsh par wifal zindagi
kitna jokhim aur uthaaye ye mann,
kyon mili saanson ki dor lambi itni
zindagi ke bandhan se ab ub gaya ye mann.

aaj fir inkaar hai mujhe khuda ke wajood se
bataao aur kitna khidmat kare mera mann,
thak gaya aaj khuda bhi karke apni jaadugari
taqdeer ke farebon se ghabraake thak gaya mera mann.

- Jenny Shabnam (15. 1. 2010)
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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

लग सकता है लेकिन जीवन तो जीने के लिए है - उत्साह बनाये रखें और अच्छा लिखें शुभकामनाएं.

खोरेन्द्र ने कहा…

आज फिर इनकार है मुझे ख़ुदा के वुज़ूद से
बताओ और कितना ख़िदमत करे मेरा मन,
थक गया आज ख़ुदा भी करके अपनी जादूगरी
तकदीर के फरेबों से घबड़ा थक गया मेरा मन !

aasha hai ........vishvaas bhi hai

par kbhi kbhi madhyam -hatashaa hi ban jaatii hai

inhe jaanane ka


bahut bahut achchhi rachana