गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

193. तुम्हारा कहा क्या टाला मैंने

तुम्हारा कहा क्या टाला मैंने

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तुम कहते हो हँसती रहा करो
दुनिया ख़ूबसूरत है जिया करो
कभी आकर देख भी जाओ
तुम्हारा कहा क्या टाला मैंने?

हँसती ही रहती हूँ हर मुनासिब वक़्त
सभी पूछते हैं मैं क्यों इतना हँसती हूँ
नहीं देखा किसी ने मुझे मुर्झाए हुए
अपने किसी भी दर्द पर रोते हुए

पर अब थक गई हूँ
अक्सर आँखें नम हो जाती हैं
शायद हँसी की सीमा ख़त्म हो रही या
ख़ुद को भ्रमित करने का साहस नहीं रहा

पर तुम्हारा कहा अब तक जिया मैंने
हर वादा अब तक निभाया मैंने
एक बार आकर देख जाओ
तुम्हारा कहा क्या टाला मैंने

- जेन्नी शबनम (8. 12. 2010)
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15 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

पर अब थक गई हूँ
अक्सर आँखें नम हो जाती हैं,
शायद हँसी की सीमा ख़त्म हो रही या
ख़ुद को भ्रमित करने का साहस नहीं रहा !
khubsurat ahsass rachna achhi lagi

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब थक गई हूँ
अक्सर आँखें नम हो जाती हैं,
शायद हँसी की सीमा ख़त्म हो रही या
ख़ुद को भ्रमित करने का साहस नहीं रहा !
sach me nahi raha , bahut hi bhawook karti rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

http://charchamanch.uchcharan.com
.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

इस पथरीले समाज में हंसी की सीमाएं कहीं तो खतम हो ही जाएँगी.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

M VERMA ने कहा…

लबों पर जब मुस्कुराहट होगी
तभी जिन्दगी की आहट होगी

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

ek acchi nazm hai.... prem ko, rishte ko samarpit....

बेनामी ने कहा…

हँसती हीं रहती हूँ हर मुनासिब वक़्त
सभी पूछते हैं मैं क्यों इतना हँसती हूँ,
नहीं देखा किसी ने मुझे मुरझाये हुए
किसी भी दर्द पर रोते हुए !
--
बहुत ही सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति!

vandana gupta ने कहा…

शायद हँसी की सीमा ख़त्म हो रही या
ख़ुद को भ्रमित करने का साहस नहीं रहा !

हर चीज़ की एक सीमा जो होती है आखिर कब तक मुस्कुराये कोई…………सुन्दर प्रस्तुति।

अनुपमा पाठक ने कहा…

sundar abhivyakti!

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

सहज साहित्य ने कहा…

जेन्नी शबनम जी इन पंक्तियों में गहरा अवसाद छुपा हुआ है -पर तुम्हारा कहा अब तक जिया मैंने
हर वादा अब तक निभाया मैंने,
एक बार आ कर देख जाओ
तुम्हारा कहा क्या टाला मैंने ! हर शब्द में व्यथा का पूरा समन्दर लहरा रहा है । आपकी यह लेखनी नित नया सर्जन करती रहे ।

***Punam*** ने कहा…

अच्छे और सच्चे भाव.....मन के भावों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति...हम में से कईयों के दिल के करीब..हंसती हुई आँखों की नमी शायद ही किसी को दिखाई देती है....शुक्रिया

विभूति" ने कहा…

अब थक गई हूँ
अक्सर आँखें नम हो जाती हैं,
शायद हँसी की सीमा ख़त्म हो रही या
ख़ुद को भ्रमित करने का साहस नहीं रहा !गहन अभिवयक्ति......