मेरी ज़िन्दगी पलायन कर रही है
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मेरी ज़िन्दगी पलायन कर रही है
या मैं स्व-रचित संसार में सिमट रही हूँ
शायद मैंने भ्रम-जाल रच लिया है
और ख़ुद ही उससे लिपट झुँझला रही हूँ
मेरे हिस्से में प्रेम और जीवन भी है
पर अपना हिस्सा मैं ही गुम कर रही हूँ
वज़ह नहीं न तो कोई इल्ज़ाम है
बस स्वप्नलोक-सी एक दुनिया तलाश रही हूँ
मेरे कई सवाल मुझे बरगलाते हैं
अब सवाल नहीं ख़ुद को ही ख़त्म कर रही हूँ।
- जेन्नी शबनम (अगस्त 11, 2010)
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meri zindagi palaayan kar rahi hai
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meri zindagi palaayan kar rahi hai
ya main swa-rachit sansaar men simat rahi hun
shaayad maine bhram-jaal rach liya hai
aur khud hi usase lipat jhunjhala rahi hun
mere hisse men prem aur jivan bhi hai
par apna hissa main hi gum kar rahi hun
vazah nahin na to koi ilzaam hai
bas swapnlok-si ek duniya talaash rahi hun
mere kai sawaal mujhe bargaalate hain
ab sawaal nahin khud ko hi khatm kar rahi hun.
- jenny shabnam (august11, 2010)
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मेरी ज़िन्दगी पलायन कर रही है
या मैं स्व-रचित संसार में सिमट रही हूँ
शायद मैंने भ्रम-जाल रच लिया है
और ख़ुद ही उससे लिपट झुँझला रही हूँ
मेरे हिस्से में प्रेम और जीवन भी है
पर अपना हिस्सा मैं ही गुम कर रही हूँ
वज़ह नहीं न तो कोई इल्ज़ाम है
बस स्वप्नलोक-सी एक दुनिया तलाश रही हूँ
मेरे कई सवाल मुझे बरगलाते हैं
अब सवाल नहीं ख़ुद को ही ख़त्म कर रही हूँ।
- जेन्नी शबनम (अगस्त 11, 2010)
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meri zindagi palaayan kar rahi hai
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meri zindagi palaayan kar rahi hai
ya main swa-rachit sansaar men simat rahi hun
shaayad maine bhram-jaal rach liya hai
aur khud hi usase lipat jhunjhala rahi hun
mere hisse men prem aur jivan bhi hai
par apna hissa main hi gum kar rahi hun
vazah nahin na to koi ilzaam hai
bas swapnlok-si ek duniya talaash rahi hun
mere kai sawaal mujhe bargaalate hain
ab sawaal nahin khud ko hi khatm kar rahi hun.
- jenny shabnam (august11, 2010)
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12 टिप्पणियां:
jenni bahn kya bhtrin bat kah dali hai bdhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
चलिये अब तो कुछ हकीकत की कहिये।
जिन्दगी ख़त्म हो जाने बाद भी सवाल तैरते रहते है हो सके तो इस जीवन में उत्तर तलासिये जरूर मिलेंगे. आत्मा नस्वर है ख़त्म ही नहीं होगी और फिर प्रश्न सामने खड़े होंगे विकराल रूप में. संकल्प बदलिए खुशहाल हवाओं को प्रवेश करने दीजिये , साहित्य को और सम्रध होने दीजिये .
आपकी रचना में आज निराशावादी दॉष्टिकोम झलक रहा है!
ज़िन्दगी से पलायन तो सही नही है……………भ्रमजाल से बाहर निकल कर देखें ज़िन्दगी बहुत कुछ कहती है उसे सुनने का प्रयास करें।
bhut hi khubsurat aur marmik abhivakti...
बढ़िया लगी रचना...
खुबसूरत रचना ,आभार|
वाह, क्य बात है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
"शायद मैंने भ्रम-जाल रच लिया है
और ख़ुद हीं उससे लिपट झुंझला रही हूँ,
मेरे हिस्से में प्रेम और जीवन भी है"
भ्रमजाल झुँझलाहट ही पैदा करता है । जो हिस्से में आए उसे जी लेना चाहिए। पता नहीं अनादृत अनुभव करके वह कहीं लौट न जाए । और जो पल लौट जाते हैं , वे वापस भी कहाँ आ पाते हैं ।
किसी भाव में पूरा डूब कर ही उससे उबर पता है इंसान...!
निराशा में ही दिखाई देती है आशा की किरण...!!
pessimistic...... life is a much better journey...even with its perplexes
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