फ़िज़ूल हैं अब
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फ़िज़ूल हैं अब
इसलिए नहीं कि सब जान लिया
इसलिए कि जीवन बेमक़सद लगता है
जैसे चलती हुई साँसें या फिर बहती हुई हवा
रात की तन्हाई या फिर दिन का उजाला
दरकार नहीं, पर ये रहते हैं अनवरत मेरे साथ चलते हैं
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फ़िज़ूल हैं अब
इसलिए नहीं कि सब जान लिया
इसलिए कि जीवन बेमक़सद लगता है
जैसे चलती हुई साँसें या फिर बहती हुई हवा
रात की तन्हाई या फिर दिन का उजाला
दरकार नहीं, पर ये रहते हैं अनवरत मेरे साथ चलते हैं
मैं और ये सब, फ़िज़ूल हैं अब।
- जेन्नी शबनम (28. 8. 2011)
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- जेन्नी शबनम (28. 8. 2011)
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12 टिप्पणियां:
मैं और ये
सब
फ़िज़ूल हैं
अब !
Sach! Kayee baar aisa hee lagtaa hai!
lagta to hai...per kya sach me?
बहुत ही बढ़िया
जैसे कि चलती हुई सांसें
या फिर बहती हुई हवा
रात की तन्हाई
या फिर दिन का उजाला,
दरकार नहीं
पर ये रहते
अनवरत
मेरे साथ चलते,
बहुत सुन्दर ... छोटी सी मगर सटिक !
bahot sunder.
sach kabhi kabhi jindagi mein aise pal bhi aate hain ki sab bemani lagta hai............
achhi rachna, padhna bhaya
shubhkamnayen
सहज और कोमल अभिव्यक्ति.
सच, में कभी -कभी यह सब फिजूल ही लगता हैं ...न कुछ करने की इच्छा ! न खाने की ! न कही जाने की !मानव -मन की गुथियाँ हें सब !
aakhir aisa kyon ?
फ़िज़ूल हैं अब
इसलिए नहीं कि सब जान लिया
इसलिए कि जीवन
बेमकसद लगता,
शबनम जी,
यह जिंदगी ऐसी है जहाँ हम हर रोज कुछ सीखते है । यह हमें कभी रूलाती है तो कभी हँसाती भी है और कभी न हँसने देती है न रोने । इस स्थिति में हमें बीच का रास्ता निकालना पड़ता है । हम को न चाह कर भी किसी के लिए या किसी मकसद के लिए जीना तो पड़ेगा ही । हो सकता है हमारी या आपकी जिंदगी अपने को अच्छी न लगे किंतु जिसे आपकी जिंदगी अच्छी लगती है उसके लिए ही सही जीना तो पड़ेगा । बहुत ही प्रशंसनीय अभिव्यक्ति ।
जेन्नी शबनम जी ,'' फ़िज़ूल है'' कि ये पंक्तियाँ जीवन के लिए सब कुछ होने या न होने पर भी इनकी संगति तो उपयुक्त प्रतीत होती हैसाथ ही कुछ सोचने पर भी बाद्य करती हैं । ।
मैं और ये
सब
फ़िज़ूल हैं
अब ! ..बहुत सुन्दर ..भावपूर्ण सटिक रचना!
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