सोमवार, 29 अगस्त 2011

277. शेष न हो (क्षणिका)

शेष न हो

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सवाल भी ख़त्म और जवाब भी
शायद ऐसे ही ख़त्म होते हैं रिश्ते
जब सामने कोई हो
और कहने को कुछ भी शेष न हो। 

- जेन्नी शबनम (27. 8. 2011)
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12 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते ...

Unknown ने कहा…

बेहद सुन्दर

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक साथ कई भावों को संजोये बहुत ही सुंदर रचना..

Suresh Kumar ने कहा…

सवाल भी ख़त्म और जवाब भी
शायद ऐसे हीं ख़त्म होते हैं रिश्ते,
जब सामने कोई हो
और कहने को कुछ भी शेष न हो !

दिल में उतर गयी आपकी यह रचना..आभार

सहज साहित्य ने कहा…

आपने इन थोड़ी -सी पंक्तियों में बहुत बड़ी बात कह दी है । संवादहीनता सारे रिश्तों को दरकिनार कर देती है । यही कारण बन जाता है हमेशा दूर चले जाने का ।बहुत बधाई !

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर।
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ई-मेल से धन्यवाद देने की बजाए पोस्ट पर कमेंट करने से रचनाकार को ज्यादा सुख मिलता है!
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भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।
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कल गणेशचतुर्थी होगी, इसलिए गणेशचतुर्थी की भी शुभकामनाएँ!

प्रेम सरोवर ने कहा…

शबनम जी.
इन परिस्थितियोंमें कहने के लिए बहुत कुछ रह जाता है लेकिन जब सामने वाला सामने बैठा रहता है तो उसकी उपस्थिति सब कुछ भूल जाने के लिए बाध्य कर देती है । उसके जाने के बाद बहुत सारी बातें याद आने लगती हैं कि आह ये बातें तो अनकही ही रह गयी । धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

amrendra "amar" ने कहा…

दिल को छू गए आपकी रचना के भाव ... बहुत अच्छी और भावपूर्ण रचना...

Rachana ने कहा…

jab samne .............
kya sunder bhav hain
rachana

Shabad shabad ने कहा…

बहुत बड़ी बात कम शब्दो में ..
दिल में उतर गयी आपकी यह रचना..
आभार !

Fani Raj Mani CHANDAN ने कहा…

Thode me bahut kuchh kah gayee aap... ye shabdon ki jaadugari nahin to aur kya hai.

Aabhar
Fani Raj