मुआ ये जाड़ा
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1.
रज़ाई बोली-
जाता क्यों नहीं जाड़ा,
अब मैं थकी।
2.
फिर क्यों आया
सबको यूँ कँपाने,
मुआ ये जाड़ा।
3.
नींद से भागे
रजाई मे दुबके
ठंडे सपने।
4.
सूरज भागा
थर-थर काँपता,
माघ का दिन।
5.
मुँह तो दिखा-
कोहरा ललकारे,
सूरज छुपा।
6.
जाड़ा! तू जा न-
करती है मिन्नतें,
काँपती हवा।
7.
रवि से डरा
दुम दबा के भागा
अबकी जाड़ा।
8.
धुंध की शाल
धरती ओढ़े रही
दिन व रात।
9.
सबको देती
ले के मुट्ठी में धूप,
ठंडी बयार।
10.
पछुआ हवा
कुनमुनाती गाती
सूर्य शर्माता।
- जेन्नी शबनम (23. 1. 2017)
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7 टिप्पणियां:
उम्दा हाईकु!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Waaaah kya baat hai !!
आपकी इस प्रस्तुति की लिंक 26-01-2017को चर्चा मंच पर चर्चा - 2585 में दिया जाएगा
धन्यवाद
अति सुन्दर रचना। बधाई
सुन्दर और सामयिक हाइकु
बहुत सुन्दर
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