कम्फर्ट ज़ोन  
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कम्फ़र्ट ज़ोन के अन्दर    
तमाम सुविधाओं के बीच   
तमाम विडम्बनाओं के बीच   
सुख का मुखौटा ओढ़े   
शनैः-शनैः बीत जाता है, रसहीन जीवन   
हासिल होता है, महज़ रोटी, कपड़ा, मकान   
बेरंग मौसम और रिश्तों की भरमार। 
कम्फर्ट ज़ोन के अन्दर 
नहीं होती है कोई मंज़िल    
अगर है, तो पराई है मंज़िल।
कम्फर्ट ज़ोन से बाहर   
अथाह परेशानियाँ मगर असीम सम्भावनाएँ    
अनेक पराजय मगर स्व-अनुभव   
अबूझ डगर मगर रंगीन मौसम   
असह्य संग्राम मगर अक्षुण्ण आशाएँ   
अपरिचित दुनिया मगर बेपनाह मुहब्बत   
अँधेरी राहें मगर स्पष्ट मंज़िल। 
बेहद कठिन है फ़ैसला लेना   
क्या उचित है? 
अपनी मंज़िल या कम्फर्ट ज़ोन। 
-जेन्नी शबनम (28.8.2018)   
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