रीसेट
*** 
हयात के लम्हात, दर्द में सने थे   
मेरे सारे दिन-रात, आँसू से बने थे   
नाकामियों, नादानियों और मायूसियों के तूफ़ान   
मन में लिए बैठे थे 
वक़्त से सुधारने की गुहार लगाते-लगाते   
बेज़ार जिए जा रहे थे   
हम थे पागल 
जो माज़ी से प्यार किए जा रहे थे। 
कल वक़्त ने कान में चुपके से कहा-   
सारे कल मिटाकर, नए आज भर लो    
वक़्त अब भी बचा है 
ज़िन्दगी को रीसेट कर लो
जितनी बची है 
उतनी ज़िन्दगी भरपूर जी लो। 
दर्द को खा लो, आँसू को पी लो   
सारे कल मिटाकर, नए आज भर लो   
वक़्त अब भी बचा है 
ज़िन्दगी को रीसेट कर लो।   
-जेन्नी शबनम (26.6.2020) 
_____________________
 
6 टिप्पणियां:
काश कि ज़िन्दगी को रीसेट कर सकते तो सबसे पहले हम ही कर लेते.
बहुत ख़ूब ... कई बार जीवन में सब कुछ भुलाना अच्छा होता है ... रीसेट कर सकें तो कितना सुख मिल जाए पर यादें इनका क्या ...
काश! Reset, edit जैसी सुविधाएं ज़िन्दगी हमें दे पाती। बहुत अच्छी कविता।
बहुत सुन्दर और सन्देशप्रद रचना।
सुन्दर रचना
बेहद खूबसूरत रचना ,आपकी मुस्कान की तरह
एक टिप्पणी भेजें