बुधवार, 1 जुलाई 2020

676. सँवरने नहीं देती (तुकांत)

सँवरने नहीं देती

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दर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती   
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती।    

इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है   
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती।    

मसला तो हल न हुआ बस चलते ही रहे   
थक गए पर ये ज़िन्दगी थमने नहीं देती।    

वक़्त के ताखे पे रखी रही उम्र की बाती   
क़िस्मत गुनहगार ज़िन्दगी जलने नहीं देती।    

अब रूसवाई क्या और भला किससे करना   
चाक-चाक दिल मगर आँसू बहने नहीं देती।    

मेरे वास्ते अपनों की भीड़ ने कजा को पुकारा   
शब से रूठी है कजा उसको मरने नहीं देती।    

- जेन्नी शबनम (1. 7. 2020) 
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13 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Udan Tashtari ने कहा…

गजब, बहुत खूब

रेणु ने कहा…



दर्द की ज़ुबान मीठी है बहकने नहीं देती
लहू में डूबी है ज़िन्दगी सँवरने नहीं देती !
इक रूह है जो जिस्म में तड़पती रहती है
कमबख्त साँस हैं जो निकलने नहीं देती !
बहुत खूब लिखा जेन्नी जी 👌👌👌👌हार्दिक शुभकामनायें🌹🌹🙏🙏🌹🌹

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 02 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(03-07-2020) को
"चाहे आक-अकौआ कह दो,चाहे नाम मदार धरो" (चर्चा अंक-3751)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

"मीना भारद्वाज"

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल।

SUJATA PRIYE ने कहा…

वाह! सुंदर गजल।

Jyoti Singh ने कहा…

वाह ,बेहद खूबसूरत ,सभी शेर लाजवाब ,बधाई हो आपको

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ऐसी ही है ज़िन्दगी -किसी का बस नहीं.

Rakesh ने कहा…

बहुत खूब

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!बिखरी-सी है ज़िंदगी ...सँवरने नहीं देते .