रविवार, 30 अगस्त 2020

682. ज़िन्दगी के सफ़हे (क्षणिका)

ज़िन्दगी के सफ़हे 

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ज़िन्दगी के सफ़हे पर चिंगारी धर दी किसी ने   
जो सुलग रही है धीरे-धीरे   
मौसम प्रतिकूल है, आँधियाँ विनाश का रूप ले चुकी हैं   
सूरज झुलस रहा है, हवा और पानी का दम घुट रहा है   
सन्नाटों से भरे इस दश्त में 
क्या ज़िन्दगी के सफ़हे सफ़ेद रह पाएँगे?   
झुलस तो गए हैं, बस राख बनने की देर है।   

- जेन्नी शबनम (30. 8. 2020) 
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9 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01 -9 -2020 ) को "शासन को चलाती है सुरा" (चर्चा अंक 3810) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समय ओने समय पर इन्हें काला सफ़ेद करता रहता है ...
शायद यही जीवन है ....
खुद ही काला कर के दुरुस्त भी कर देता है ... बहुत भावपूर्ण रचना ...

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 1 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



अनीता सैनी ने कहा…

वर्तमान समय का यथार्थ चित्रण।बेहतरीन आदरणीय दी 👌

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

SUJATA PRIYE ने कहा…

वाह बेहतरीन सृजन सखी।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

जीवन की आग है, राख होने के पहले रोशनी भरनी है