योग
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जीवन जीना सरल बहुत
अगर समझ लें लोग
करें सदा मनोयोग से
हर दिन थोड़ा योग।
हजारों सालों की विद्या
क्यों लगती अब ढोंग
आओ करें मिलकर सभी
पुनर्जीवित ये योग।
साँसे कम होतीं नहीं
जो करते रहते योग
हमको करना था यहाँ
अपना ही सहयोग।
इस शतक के रोग से
क्यों जाते इतने लोग
अगर नियम से देश में
घर-घर होता योग।
दे गया गहरा ज्ञान भी
कोरोना का यह सोग
औषधि लेते रहते पर
संग करते हम सब योग।
चमत्कार ये योग बना
दूर भगा दे रोग
तन अपना मंदिर बना
पूजा अपना योग।
जीवन के अवलम्ब हैं
प्रकृति, ध्यान व योग
तन का मन का हो नियम
सरल साधना जोग।
- जेन्नी शबनम (9. 6. 2021)
(अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, 21. 6. 21)
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15 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर,सार्थक सृजन।
बहुत सुंदर,
बहुत सुंदर सृजन
योग का महत्व बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने, शबनम दी।
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर सृजन
योग को लेकर सुन्दर संवाद इस रचना द्वारा ...
ये समाई की माँग है ... योग एक वोज्ञान है जिसकी ज़रूरत है आज और विज्ञानिक तरीके को जान्ने समझाने की भी ...
अच्छी राचना ...
सुन्दर
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
योग का महत्व और उसकी उपयोगिता पर बहुत ही सार्थक रचना।
साधुवाद।
सुंदर।
हजारों सालों की विद्या
क्यों लगती अब ढोंग
आओ करें मिलकर सभी
पुनर्जीवित ये योग।
योग का महत्व बताती बहुत ही सुन्दर कृति
वाह!!!
योग और सहयोग...कोरोना की दो शिक्षायें मानवता को शायद लम्बे समय तक याद रहें...और उपचार के लिये आयुर्वेद...ख़ूबसूरत रचना...👏👏👏
बहुत सुन्दर रचना।
उम्दा
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