सोमवार, 31 मई 2010

145. बँटे हुए तुम / bante hue tum

बँटे हुए तुम

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क्या कभी भी सोचा या जाना तुमने
क्यों दूर हो गई ख़ुद ही मैं तुमसे,
एक-एक लम्हा जो साथ जिए थे
न पूछो, बड़ा दर्द देते थे,
आस हो, तो फिर भी काँटों को सह लूँ
हर चुभन को फूलों की चुभन सोचूँ,
कभी ख़ुद से हारी नहीं
पर तुमको जीती भी तो नहीं,
मेरा मौन समर्पण मुझे तोड़ गया
और शायद यही, तुमको मुझसे दूर कर गया,
मैं, मैं हूँ, ये तुम क्यों न मान सके
हर रोज़ एक नयी उर्वशी तलाशते रहे,
अब चाहती भी नहीं, वापस लौटो तुम
अब मुझे भी स्वीकार्य नहीं, बँटे हुए तुम,
कोई शिकायत मेरी, नहीं पहुँचेगी अब तुम तक
मिलने की व्याकुलता रहेगी ज़ब्त मुझ तक,
जाओ, तुमको आज़ाद किया
ख़ुद ही अपना दिल वीरान किया,
प्रेम पथिक, तुम बन न सके कभी मेरे
देती दुआ 'शब' -
जीओ प्रेम में, तो किसी के 

- जेन्नी शबनम (31. 5. 2010)
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bante hue tum.

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kya kabhi bhi socha ya jaana tumne
kyon door ho gai khud hin main tumse,
ek-ek lamha jo saath jiye the
na puchho, bada dard dete theye,
aas ho, to phir bhi kaanton ko sah loon
har chubhan ko phulon ki chubhan sochoon,
kabhi khud se haari nahin
par tumko jiti bhi to nahin,
mera moun samarpan mujhe tod gaya
aur shaayad yahi, tumko mujhse door kar gaya,
main, main hun, ye tum kyon na maan sake
har roz ek nayee urvashi talaashte rahe,
ab chaahti bhi nahin, wapas louto tum
ab mujhe bhi swikaarya nahin, bante hue tum,
koi shikaayat meri, nahin pahunchegi ab tum tak
milane ki vyaakulta rahegi zabt mujh tak,
jao, tumko aazaad kiya
khud hin apna dil weeran kiya,
prem pathik, tum ban na sake kabhi mere
deti dua 'shab' -
jio prem mein, to kisi ke.

- Jenny Shabnam (31. 5. 2010)
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14 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

जाओ, तुमको आज़ाद किया
ख़ुद हीं, अपना दिल, वीरान किया,

प्रेम पथिक, तुम बन न सके, कभी मेरे
देती दुआ ''शब'', जिओ प्रेम में, तो किसी के !
Kitnaa dard chhupa hai is rachna me!
Ek aah-si nikli dilse...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैं, मैं हूँ, ये तुम क्यों न मान सके
हर रोज़ एक नयी उर्वशी, तलाशते रहे, ...
..........
जो हर दिन एक तलाश करे
वह क्या मानेगा, क्यूँ मानेगा
समझना है...और परे हो जाना है

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

सही निर्णय !!

Harshad Mehta ने कहा…

Touching.

Ra ने कहा…

प्रथम बार ब्लॉग पर आया ...मन प्रसन्न हुआ ...सुन्दर रचना !!!..समय निकाल कर पिछली भी पढता हूँ

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

khoobsoorat rachna....badhai

Alpana Verma ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना.
शीर्षक ही बोल रहा है!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dard bhari rachna..........lekin har pankti se dard dikh raha hai.........dur kar ke bhi khud ke andar ek dard mahsoos ho raha hai........!!

Bahut achchhi kavita!!

Jenny Jee, intazaar hai mere blog pe!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी रचनाओं में दर्द बोलता है....बहुत सुंदरता से शब्द दिए हैं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अब चाहती भी नहीं, कि वापस लौटो तुम
मुझे भी अब स्वीकार्य नहीं, बँटे हुए तुम,

सच है बनते हुवे इंसान किसी के नही होते ... अच्छा होता है उसे अस्वीकार कर देना ... छोड़ देना ... भावना प्रधान रचना है ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कल मंगलवार को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है



http://charchamanch.blogspot.com/

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

apne aatmsamman ko bachati bewafayi k dard se pukarti ek nari k man ki vyatha ko sashakt shabdawli di hai. sunder abhivyakti.

शारदा अरोरा ने कहा…

ये नारी है , अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , खुद को खुद से दूर जाते हुए देखना , मन को छू गई कविता ।