मंगलवार, 17 अगस्त 2010

165. जीवन की अभिलाषा / jivan ki abhilasha

जीवन की अभिलाषा

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कोई अनजाना
जो है अनदेखा
सुन लेता समझ लेता
लिख जाता पढ़ जाता
कह देता वह सब
जो मेरे मन ने था चाहा 
भला कैसे होता है यह संभव?
संवेदनाएँ अलग-अलग होती हैं क्या?
नहीं आया अब तक मुझे
अनदेखे को देखना
अनपढ़े को पढ़ना
अनकहे को लिखना
अनबुझे को समझना
क्षण-क्षण का अस्वीकार क्यों?
जीवन को परखना न आया क्यों?
निर्धारित पथ का अनुपालन ही उचित क्यों?
विस्मित हूँ, विफल नहीं
स्तब्ध हूँ, अधैर्य नहीं
उलझन है पर रहस्य नहीं
पथ है पर साहस नहीं
अविश्वास स्वयं पर क्यों?
कामना फिर अक्षमता क्यों?
हर डोर हाथ में फिर दूर क्यों?
समय और डगर की भाषा
ले आएगी सम्मुख मेरे
एक दिन निःसंदेह
जीवन की हर अभिलाषा

- जेन्नी शबनम (17. 8. 2010)
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jivan ki abhilasha

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koi anjaana
jo hai andekha
sun leta samajh leta
likh jaata padh jaata
kah deta wah sab
jo mere mann ne tha chaaha.
bhalaa kaise hota hai yah sambhav?
samvednaayen alag-alag hoti hain kya?
nahin aaya ab tak mujhe
andekhe ko dekhna
anpadhe ko padhna
ankahe ko likhna
anbujhe ko samajhna.
kshan-kshan ka asvikaar kyon?
jivan ko parakhna na aaya kyon?
nirdhaarit path ka anupaalan hi uchit kyon?
vismit hun, vifal nahin
stabdh hun, adhairya nahin,
uljhan hai par rahasya nahin
path hai par saahas nahin.
avishvaas svayam par kyon?
kaamna fir akshamta kyon?
har dor hath men fir door kyon?
samay aur dagar ki bhaasha
le aayegi sammukh mere
ek din nihsandeh
jivan ki har abhilaasha.

- Jenny Shabnam (17. 8. 2010)
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6 टिप्‍पणियां:

rasaayan ने कहा…

Bahut sunder shabdon main baat kahi....'जीवन को परखना न आया क्यों ?'
yehi abhilasha hai meri....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

उम्मीद करते हैं अभिलाषा पूरी हो.
सुंदर अभिव्यक्ति.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कोई अनजाना
जो है अनदेखा,
सुन लेता समझ लेता
लिख जाता पढ़ जाता,
कह देता वो सब
जो मेरे मन ने था चाहा !
भला कैसे होता है ये संभव?... kahin to kuch anjana rishta hota hai n khyaalon ka

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

खूबसूरत कविता.
..आप तो दार्शनिक हैं!

Madhu Rani ने कहा…

निर्धारित पथ का अनुपालन ही उचित क्यों ? बहुत सही प्रश्न है... अच्छी लगी कविता