रविवार, 5 सितंबर 2010

171. मेरी दुनिया / meri duniya (क्षणिका)

मेरी दुनिया

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यथार्थ से परे, स्वप्न से दूर
क्या कोई दुनिया होती है?
शायद मेरी दुनिया होती है 
एक भ्रम अपनों का, एक भ्रम जीने का
कुछ खोने और पाने का
विफलताओं में आस बनाए रखने का
नितांत अकेली मगर भीड़ में खोने का 
यह लाज़िमी है, ऐसी दुनिया न बनाऊँ तो जिऊँ कैसे

- जेन्नी शबनम (4. 9. 2010)
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meri duniya

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yathaarth se parey, swapn se door
kya koi duniya hoti hai?
shaayad meri duniya hotee hai.
ek bhram apnon ka, ek bhram jine ka
kuchh khone aur paane ka
vifaltaaon mein aas banaaye rakhne ka
nitaant akeli magar bheed mein khone ka.
yah lazimi hai, aisi duniya na banaaun, to jiyun kaise.

- Jenny Shabnam (4. 9. 2010)
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7 टिप्‍पणियां:

विवेक सिंह ने कहा…

आपको जज्बा मिले और मिले जोश
आफतों के आपको देखत ही उड़ें होश

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया जज़्बा ...सुन्दर रचना ..

Sunil Kumar ने कहा…

दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

Unknown ने कहा…

वाह वाह

उम्दा...........

बहुत उम्दा ..........

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

jeene ke liye kuchh to karna parega........:)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

nihshabd kar diya aapne to

खोरेन्द्र ने कहा…

bahut khub