बुधवार, 29 दिसंबर 2010

198. एक टुकड़ा पल

एक टुकड़ा पल

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उस मुलाक़ात में
तुम दे गए, अपने वक़्त का एक टुकड़ा
और ले गए, मेरे वक़्त का एक टुकड़ा 

तुम्हारा वो टुकड़ा
मुझमें 'मैं' बनकर, समाहित हो गया
जो हर पहर मुझे
छुपाए रखता है, अपने सीने में  

ज़रा देर को भी वो
मुझसे अलग हो तो, मैं रो देती हूँ
एक वही है जो, जीना सिखाता है
तुम तो जानते हो न यह
और वह सब भी
जो मैं अपने साथ करती हूँ
या जो मेरे साथ होता है 

पर तुम वो मेरा टुकड़ा
कहाँ छोड़ आए हो?
जानती हूँ वो मूल्यवान नहीं
न ही तुमको इसकी ज़रूरत होगी
पर मेरे जीवन का सबसे अनमोल है
मेरे वक़्त का वो टुकड़ा 

याद है तुमको
वह वक़्त जो हमने जिया
अंतिम निवाला जो तुमने, अपने हाथों से खिलाया
और उस ऊँचे टीले से उतरने में
मैं बेख़ौफ़ तुम्हारा हाथ थाम कूद गई थी 

आलिंगन की इजाज़त
न मैंने माँगी, न तुमने चाही
हमारी साँसें और वक़्त
दोनो ही तेज़ी से दौड़ गए
और हम देखते रहे,
वो तुम्हारी गाड़ी की सीट पर
आलिंगनबद्ध मुस्कुरा रहे थे 

जानती हूँ
वह सब बन गया है तुम्हारा अतीत
पर इसे विस्मृत न करना मीत
मेरे वक़्त को साथ न रखो
पर दूर न करना ख़ुद से कभी
जब मिलो किसी महफ़िल में
तब साथ उसे भी ले आना
वहीं होगा तुम्हारा वक़्त मेरे साथ 

हमारे वक़्त के टुकड़े
गलबहियाँ किए वहीं होंगे
मैं सिफ टुकुर-टुकुर देखूँगी
तुम भले न देखना
पर वापसी में मेरे वक़्त को
ले जाना अपने साथ
अगली मुलाक़ात के इंतज़ार में
मैं रहूँगी
तुम्हारे उसी, वक़्त के टुकड़े के साथ 

- जेन्नी शबनम (29. 12. 2010)
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10 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय जेन्नी शबनम जी
नमस्कार !
ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर पल यही है दिल की दुआ आपके लिए
खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए...
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं.

सदा ने कहा…

इंतज़ार में
मैं रहूंगी
तुम्हारे उसी
वक़्त के टुकड़े के साथ !

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई ।

vandana gupta ने कहा…

ये वक्त का टुकडा ही जीने का सामान बन जाता है…………सुन्दर अभिव्यक्ति।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
आपको नव वर्ष मंगलमय हो!

सहज साहित्य ने कहा…

जानती हूँ वो सब
बन गया है
तुम्हारा अतीत,
पर इसे
विस्मृत न करना मीत,
आपकी कविता तो कभी अतीत बनती ही नहीं , सूक्ष्म से सूक्ष्मतर संवेदना को आकार देक्ने की कलात्मकता तो कोई आपसे सीखे । आपका हर वाक्य बीजमंत्र है , किसी अन्य विस्तृत व्याख्या का । नए साल में आपकी लेखनी इसी प्रकार के मधुरस का पान कराती रहेगी ।

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

आपको नववर्ष 2011 मंगलमय हो ।
सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com

Dorothy ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.

आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

ऐतराज़ क्यों ?
बड़े अच्छे हों तो बच्चे भी अच्छे ही रहते हैं .
आज कल तो बड़े ऐसे भी हैं कि 'माँ और बहन' कहो तो भी ऐतराज़ कर डालें.
ऐसे लोगों को टोकना निहायत ज़रूरी है . गलती पर खामोश रहना या पक्षपात करना
ही बड़े लोगों को बच्चों से भी गया गुज़रा बनती है .
रचना जी को मां कहने पर
और
दिव्या जी को बहन कहने पर
ऐतराज़ क्यों ?
अगर आप यह नहीं जानना चाहते तो कृप्या निम्न लिंक पर न जाएं।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/patriot.html

***Punam*** ने कहा…

यादों के ये टुकड़े ही जीने के काम आते हैं..

इन्हें सहेजें,संवारें और छुपा कर रखें ..