हर लम्हा सबने उसे
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मुद्दतों की तमन्नाओं को, मरते देखा
मानों आसमाँ से तारा कोई, गिरते देखा।
मिलती नहीं राह मुकम्मल, जिधर जाएँ
बेअदबी का इल्ज़ाम, ख़ुद को लुटते देखा।
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मुद्दतों की तमन्नाओं को, मरते देखा
मानों आसमाँ से तारा कोई, गिरते देखा।
मिलती नहीं राह मुकम्मल, जिधर जाएँ
बेअदबी का इल्ज़ाम, ख़ुद को लुटते देखा।
हर इम्तहान से गुज़र गए, तो क्या हुआ
इबादत में झुका सिर, उसे भी कटते देखा।
इश्क़ की बाबत कहा, हर ख़ुदा के बन्दे ने
फिर क्यों हुए रुसवा, इश्क़ को मिटते देखा।
अपनों के खोने का दर्द, तन्हा दिल ही जाने है
रुख़सत हो गए जो, अक्सर याद में रोते देखा।
मान लिया सबने, वो नामुराद ही है फिर भी
रूह सँभाले, उसे मर-मर कर बस जीते देखा।
'शब' की दर्द-ए-दास्तान, न पूछो मेरे मीत
हर लम्हा सबने उसे, बस यूँ ही हँसते देखा।
- जेन्नी शबनम (4. 1. 2011)
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10 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर गज़ल्।
इश्क की बाबत कहा, हर ख़ुदा के बन्दे ने
फिर क्यों हुए रुसवा, इश्क को मिटते देखा !
isi baat ko to kabhi samajh na paye
आपकी गजल में तो बहुत दार्शनिकता छिपी है!
आपकी कविता पढ़कर न जाने कैसे ये शब्द पैदा हो गए ,आपसे बांटने का साहस कर रहा हूँ ,ये सच है आपकी इस अद्भुत रचना के सामने मेरे शब्द गौण हैं
मैंने तुमको जब जब देखा शीशा देखा
शीशों जैसा टूटता देखा,फूटता देखा
आँखों के चौरस्ते देखा ,धड़कन के बाबस्ते देखा
चेहरों पर चेहरे छुपाये हर चेहरे को पढता देखा
किसी एक पंक्ति की तारीफ करना मुश्किल है ...हर पंक्ति लाजवाब ...बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये ।
हमेशा की तरह ........ लाजबाब
हर इम्तहान से गुज़र गये, तो क्या हुआ
इबादत में झुका सिर, उसे भी कटते देखा !
बहुत खूब ....सुन्दर भावमय करते शब्द ।
सुन्दर प्रस्तुति,
आप की कविता बहुत अच्छी लगी
बहुत बहुत आभार
अपनों के खोने का दर्द, तन्हा दिल हीं जाने है
रुखसत हो गये जो, अक्सर याद में रोते देखा !
वाह! अच्छा कहा है!
किन पंक्तियों को अपने लिए चुनू ये समझ नहीं पा रहा । आज कुछ हल्का हल्का सा दर्द है..पर उसे शब्द नहीं मिल रहे थे....पर आपने शब्द दे दिए.....संयोग सेकभी कभी कैसा कैसा अजीब हो जाता है ...दर्द मेरा और शब्द आपने दे दिया..शुक्रिया.....
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