तुममें अपनी ज़िन्दगी
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सोचती हूँ
कैसे तय किया होगा तुमने
ज़िन्दगी का वो सफ़र
जब तन्हा ख़ुद में जी रहे थे
और ख़ुद से ही एक लड़ाई लड़ रहे थे।
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सोचती हूँ
कैसे तय किया होगा तुमने
ज़िन्दगी का वो सफ़र
जब तन्हा ख़ुद में जी रहे थे
और ख़ुद से ही एक लड़ाई लड़ रहे थे।
जानती हूँ
उस सफ़र की पीड़ा
वाक़िफ़ भी हूँ उस दर्द से
जब भीड़ में कोई तन्हा रह जाता है
नहीं होता कोई अपना
जिससे बाँट सके ख़ुद को।
तुम्हारी हार
मैं नहीं सह सकती
और तुम
मेरी आँखों में आँसू
चलो कोई नयी राह तलाशते हैं
साथ न सही दूर-दूर ही चलते हैं
बीती बातें, मैं भी छोड़ देती हूँ
और तुम भी ख़ुद से
अलग कर दो अपना अतीत
तुम मेरी आँखों में हँसी भरना
और मैं तुममें अपनी ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (8. 1. 2011)
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और तुम भी ख़ुद से
अलग कर दो अपना अतीत
तुम मेरी आँखों में हँसी भरना
और मैं तुममें अपनी ज़िन्दगी।
- जेन्नी शबनम (8. 1. 2011)
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10 टिप्पणियां:
dono agar ek dusre ki aankho me khushi dhundh len aur khushi chahen to kya kahne...:)
shandaar abhivyakti di.......
इस रचना की स्पष्टता, गहराई और बारीक विश्लेषण प्रभावित करते हैं । बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
कविता - इन दिनों ..
wah.bahut sunder bhaw.
pyar ki nirmal bhaavnao se ot-prot sunder rachna.
तुम्हारी हार
मैं नहीं सह सकती
और तुम
मेरी आँखों में आंसू,
चलो कोई नयी राह तलाशते हैं
साथ न सही दूर दूर हीं चलते हैं,
बीती बातें
मैं भी छोड़ देती हूँ
और तुम भी ख़ुद से
अलग कर दो अपना अतीत,
तुम मेरी आँखों में हँसी भरना
और मैं तुममें अपनी ज़िन्दगी...
सुंदर भाव..सुंदर अभिव्यक्ति..
"मेरे आंसू कहीं कमज़ोर न कर दें तुझको
मैंने हर कतरा छुपाया है पलकों में अब भी"
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
जानती हूँ मैं
उस सफ़र की पीड़ा
और वाकिफ़ भी हूँ उस दर्द से
जब भीड़ में कोई तन्हा रह जाता है
और नहीं होता कोई अपना
जिससे बाँट सके ख़ुद को !
yahi ehsaas jodta hai
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
jenni ji prem kee gahan anubhuti aur abhivyakti hai apki yah kavita.. sundar.. komal komal..
,किसी की हार और किसी के आंसुओं को न सह पाने की बात फिर भी दूरी बनाये रखने की कोशिश ,भ्रमित करती है ये कविता|
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