गुरुवार, 9 जून 2011

251. ग्रीष्म (ग्रीष्म के 10 हाइकु) पुस्तक - 17, 18

ग्रीष्म
(ग्रीष्म के 10 हाइकु)

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1.
तपती गर्मी
अब तो बरस जा
ओ रे बदरा।

2.
उसका ताप
जल उठे जो हम
सूरज हँसा।

3.
सह न सके
उड़ चले पखेरू
बावड़ी सूखी।

4.
गगरी खाली
सूख गई धरती
प्यासी तड़पूँ।

5.
सूर्य कठोर
अगन बरसाए
कहीं न छाँव।

6.
झुलस गई
धधकती धूप में
मेरी बगिया।

7.
खेलते बच्चे
बरगद की छाँव
कभी था गाँव।

8.
सूर्य उगले
आग का है दरिया
तन झुलसा।

9.
सूरज जला
तपता जेठ मास
आ जा आषाढ़।

10.
तपता जेठ
मन को अलसाए
पौधे मुर्झाए।

- जेन्नी शबनम (2. 4. 2011)
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9 टिप्‍पणियां:

udaya veer singh ने कहा…

ग्रीष्म की तपिश ,काव्य बनने को मजबूर , मुखर रचना . शुक्रिया जी

Jyoti Mishra ने कहा…

lovely
Well written !!!

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जापानी छन्द हाइकू का बढ़िया प्रयोग किया है आपने!

सहज साहित्य ने कहा…

ग्रीष्म ॠतु का भावपूर्ण और यथार्थ का अनुभव करानेवाला चित्रण !हर शब्द-चित्र में भाषा की कुशलता और सटीक प्रयोग हाइकु को जीवन्त बना रहे हैं ।

Udan Tashtari ने कहा…

मौसम के हाईकु...बढ़िया.

Vivek Jain ने कहा…

बहुत ही बढ़िया हाइकु,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

prerna argal ने कहा…

garmi se tarast bbechani ko batati hui saarthak rachanaa.badhaai aapko.





please visit my blog.thanks.

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

@ Udaya veer ji,
aapka shukriya.

@Jyoti ji,
bahut aabhar.

@ Satyam ji,
yahan aane aur meri rachna ko charcha manch par sthaan dene keliye bahut dhanyawaad.

@ Roopchandra ji,
bahut aabhar.

@ Rameshwar kamboj bhai,
aapkee prerna aur sneh ke karan main haaiku likh saki hun. yun hin sneh banayen rakhen. bahut aabhar.

@ Sameer ji,
yahan aane ka bahut shukriya.

@ Vivek ji,
bahut shukriya.

@ Prerna ji,
bahut shukriya.