हो ही नहीं
*******
कौन जाने सफ़र कब शुरू हो
या कि हो ही नहीं
रास्ते तो कहीं जाते नहीं
चलना मेरे नसीब में हो ही नहीं।
- जेन्नी शबनम (1. 2. 2011)
_____________________
*******
कौन जाने सफ़र कब शुरू हो
या कि हो ही नहीं
रास्ते तो कहीं जाते नहीं
चलना मेरे नसीब में हो ही नहीं।
- जेन्नी शबनम (1. 2. 2011)
_____________________
9 टिप्पणियां:
अच्छा शेर है जी!
kuch shabd , gahre bhaw
bahut chhoti se kintu bahut gambheer rachna ... umda..
लाजवाब।
waah waah !!
Rally beautiful.... this shows the uncertainties in life.
कौन जाने सफ़र कब शुरू हो
या कि हो हीं नहीं,
रास्ते तो कहीं जाते नहीं
चलना मेरे नसीब में हो हीं नहीं ! जेन्नी जी आपकी इस कविता को पढ़कर मैं इतना ही कह सकता हूँ - तलाशेगी सफ़र में किसी दिन मंजिल तुमको हर पड़ाव इन कदमों के बहुत करीब होगा । तुम बहते हुए दरिया की हो धारा निर्मल जो ना समझे कि क्या हो उसका नसीब होगा ।
SUNDAR AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI.
लाजवाब शेर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
CHAR LINE OR JINDGI KI BAAT. . .
LAJWAAC SHER
JAI HIND JAI BHARAT
एक टिप्पणी भेजें