बुधवार, 15 जून 2011

253. वो दोषी है

वो दोषी है

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कच्ची उम्र
कच्ची सड़क पर
अपनी समस्त पूँजी
घसीट रही
उसे जाना है सीमा के पार
अकेले रहने
क्योंकि
वो पापी है
वो दोषी है!
छुपा रही है लूटा धन
लपेट रही है अपना बदन
शब्द-वाणों से है छलनी मन
नरभक्षियों ने किया है घायल तन
सगे-संबंधी विवश
मूक ताक रहे सभी निस्तब्ध!
नोच खाया जिसने
उसी ने ठराया दोषी उसे
अब न मिलेगी छाँव
भले कितने ही थके हों पाँव
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
झुकी आँखें शर्म से!

- जेन्नी शबनम (14. 6. 2011)
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10 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi abhivyakti

vandana gupta ने कहा…

बेहद गहन और मार्मिक चित्रण्।

सहज साहित्य ने कहा…

अब न मिलेगी छाँव
भले कितने हीं थके हों पाँव
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
इन पंक्तियों में विवशता का घूँट पीकर जीवन जीने की विवश विडम्बना का मार्मिक चित्रित अंकित किया है । सचमुच जब कोई असहाय होने को बाध्य हो जाता है , सब उसका साथ छोड़ देते हैं ।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति..

SAJAN.AAWARA ने कहा…

KAFI MARM OR VEDNA HAI APKI IS RACHNA ME. . . . .
JAI HIND JAI BHARAT

Unknown ने कहा…

कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
झुकी आँखें शर्म से!

पीड़ादायक शब्द, आक्रोश भी बधाई जेन्नी जी

Neelam Sharma ने कहा…

ek kadwa sach.behtarin abhivyakti.

विभूति" ने कहा…

bhut hi acchi abhivakti...

bedhak ने कहा…

नोच खाया जिसने उसे
उसी ने ठहराया दोषी उसे...
पुरूषवादी मानसिकता पर करारा प्रहार करती आपकी यह रचना सामाजिक विसंगतियों को सलीके से उजागर करती है. नारी संवेदना को समर्पित इस अभिव्यक्ति के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब