वो दोषी है
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कच्ची उम्र
कच्ची सड़क पर
अपनी समस्त पूँजी
घसीट रही
उसे जाना है सीमा के पार
अकेले रहने
क्योंकि
वो पापी है
वो दोषी है!
छुपा रही है लूटा धन
लपेट रही है अपना बदन
शब्द-वाणों से है छलनी मन
नरभक्षियों ने किया है घायल तन
सगे-संबंधी विवश
मूक ताक रहे सभी निस्तब्ध!
नोच खाया जिसने
उसी ने ठराया दोषी उसे
अब न मिलेगी छाँव
भले कितने ही थके हों पाँव
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
झुकी आँखें शर्म से!
- जेन्नी शबनम (14. 6. 2011)
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कच्ची उम्र
कच्ची सड़क पर
अपनी समस्त पूँजी
घसीट रही
उसे जाना है सीमा के पार
अकेले रहने
क्योंकि
वो पापी है
वो दोषी है!
छुपा रही है लूटा धन
लपेट रही है अपना बदन
शब्द-वाणों से है छलनी मन
नरभक्षियों ने किया है घायल तन
सगे-संबंधी विवश
मूक ताक रहे सभी निस्तब्ध!
नोच खाया जिसने
उसी ने ठराया दोषी उसे
अब न मिलेगी छाँव
भले कितने ही थके हों पाँव
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
झुकी आँखें शर्म से!
- जेन्नी शबनम (14. 6. 2011)
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10 टिप्पणियां:
bahut hi achhi abhivyakti
बेहद गहन और मार्मिक चित्रण्।
अब न मिलेगी छाँव
भले कितने हीं थके हों पाँव
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
इन पंक्तियों में विवशता का घूँट पीकर जीवन जीने की विवश विडम्बना का मार्मिक चित्रित अंकित किया है । सचमुच जब कोई असहाय होने को बाध्य हो जाता है , सब उसका साथ छोड़ देते हैं ।
बहुत मार्मिक प्रस्तुति..
KAFI MARM OR VEDNA HAI APKI IS RACHNA ME. . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
कोई नहीं है साथ
जिसे कहे मन की बात
हार गई स्वयं अपने से
झुकी आँखें शर्म से!
पीड़ादायक शब्द, आक्रोश भी बधाई जेन्नी जी
ek kadwa sach.behtarin abhivyakti.
bhut hi acchi abhivakti...
नोच खाया जिसने उसे
उसी ने ठहराया दोषी उसे...
पुरूषवादी मानसिकता पर करारा प्रहार करती आपकी यह रचना सामाजिक विसंगतियों को सलीके से उजागर करती है. नारी संवेदना को समर्पित इस अभिव्यक्ति के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद.
बहुत खूब
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