मंगलवार, 28 जून 2011

258. नन्ही भिखारिन (पुस्तक - 84)

नन्ही भिखारिन

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यह उसका दर्द है,
पर मेरे बदन में 
क्यों रिसता है?
या खुदा! 
नन्ही-सी जान, कौन-सा गुनाह था उसका?
शब्दों में खामोशी, आँखों में याचना, पर शर्म नही
हर एक के सामने, हाथ पसारती
सौ में से कोई एक कुछ दे जाता
उतने में ही संतुष्ट!
थोड़ा थमकर, गिनकर   
फिर अगली गाड़ी के पास, बढ़ जाती। 
उफ़! 
उसे पीड़ा नही होती?
पर क्यों नही होती?
कहते हैं पिछले जन्म का इस जन्म में 
भुगतता है जीवन
फिर इस जन्म का भुगतना
कब सुख पाएगा जीवन?
मन का धोखा या सब्र की एक ओट
जीने की विवशता
पर मुनासिब भी तो नही अंत। 
कुछ सिक्कों की खनक में, खोया बचपन
फिर भी शांत, जैसे यही नसीब
जीवित हैं, जीना है, नियति है
ख़ुदा का रहम है।  
उफ़!
उसे खुदा पर रोष नही होता?
पर क्यों नही होता?
उसका दर्द उसका संताप, उसकी नियति है
उसका भविष्य उसका वर्तमान, एक ज़ख़्म है। 
यह उसका दर्द है
पर मेरे बदन में
क्यों रिसता है?

- जेन्नी शबनम (10. 1. 2009)
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9 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin drd bhre andaz me likhi gayi rachna bdhai ho .akhtar khan akela kota rajsthan

Rajeysha ने कहा…

मेरे ख्‍याल से दर्द का असली अनुभव दर्द के वि‍षय में क्रांति‍कारी बदलाव ला सकता है, हो सकता है आप भि‍खारि‍यों से संबंधि‍त कि‍सी मौलि‍क कार्य में अतुलनीय योगदान दें।

Unknown ने कहा…

अच्छे भाव बिखेरते और अहसास करते शब्द बधाई

सहज साहित्य ने कहा…

नन्हीं भिखारिन का यह करुण चित्रण मन को झकझोर देता है । इन पंक्तियों में रचनाकार की पीड़ा भी एकाकार हो जाती है-"उसका दर्द उसका संताप
उसकी नियति है,
उसका भविष्य उसका वर्तमान
एक ज़ख्म है|
यह उसका दर्द है
पर मेरे बदन में
क्यों रिसता है?" आपकी इन पंक्तियों ने तो अभिभूत कर दिया , जेन्नी शबनम जी

मनोज कुमार ने कहा…

हृदयस्पर्शी रचना।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यह उसका दर्द है,
पर मेरे बदन में
क्यों रिसता है?
yahi to dard ka rishta hai...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सुंदर भाव....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना

nilesh mathur ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति!