गुरुवार, 7 जुलाई 2011

263. स्तब्ध खड़ी हूँ

स्तब्ध खड़ी हूँ

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ख़्वाबों के गलियारे में, स्तब्ध मैं हूँ खड़ी
आँखों से ओझल, ख़ामोश पास तुम भी हो खड़े,
साँसे हैं घबराई-सी, वक़्त भी है परेशान खड़ा
जाने कौन सी विवशता है, वक़्त ठिठका है
जाने कौन सा तूफ़ान थामे, वक़्त ठहरा है। 

मेरी सदियों की पुकार तुम तक नहीं पहुँचती
तुम्हारी ख़ामोशी व्यथित कर रही है मुझे, 
अपनी आँखों से अपने बदन का लहू पी रही
और जिस्म को आँसुओं से सहेज रही हूँ। 

मैं, तुम और वक़्त
सदियों से सदियों का तमाशा देख रहे हैं
न हम तीनों थके न सदियाँ थकीं, 
शायद एक और इतिहास रचने वाला है
या शायद एक और बवंडर आने वाला है। 

- जेन्नी शबनम (23. 1. 2009)
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8 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

bhut hi acchi prstuti...

वाणी गीत ने कहा…

मैं , तुम और वक़्त सदियों से सदियों का तमाशा देख रहे हैं ...
गहन भाव !

mridula pradhan ने कहा…

मैं, तुम और वक्त ...
सदियों से सदियों का तमाशा देख रहे हैं|
bemisaal.

सहज साहित्य ने कहा…

आपकी पूरी कविता में एक व्याकुलता , आविष्ट -सी व्याकुलता भरी है और इन पंक्तियों में तो तूफ़ान -सा भरा है- ख़्वाबों के गलियारे में, स्तब्ध, मैं हूँ खड़ी,
आंखों से ओझल, ख़ामोश, पास तुम भी हो खड़े,
साँसे हैं घबराई सी, वक्त भी है परेशान खड़ा|
जाने कौन सी विवशता है, वक्त ठिठका है,
जाने कौन सा तूफ़ान थामे, वक्त ठहरा है| इस कविता का एक -एक शब्द झकझोर कर रख देता है। हम तय ही नहीं कर पाते कि अगले पल जीवन में क्या होने वाला है । बहुत अच्छी कविता !

कविता रावत ने कहा…

मैं, तुम और वक्त ...
सदियों से सदियों का तमाशा देख रहे हैं|
न हम तीनों थके न सदियाँ थकी,
शायद...एक और इतिहास रचने वाला है,
या शायद...एक और बवंडर आने वाला है|
... jidagi ke kashmkash ko pradarshit karti badiya rachna!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना पेश की है आपने!

Vivek Jain ने कहा…

बहुत अच्छी कविता !

आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

संध्या शर्मा ने कहा…

मैं , तुम और वक़्त सदियों से सदियों का तमाशा देख रहे हैं ...

बहुत खूबसूरत रचना..........