मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

322. प्रेम (पुस्तक - 108)

प्रेम

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उचित-अनुचित और पाप-पुण्य की कसौटी पर 
तौली जाती है, प्रेम की परिभाषा,
पर प्रेम तो हर परिभाषा से परे है 
जिसका न रूप, न आकार 
बस महसूस करना ही एक मात्र 
प्रेम में होने की संतुष्ट व्याख्या है, 
प्रेम आदत नहीं 
जिससे अन्य आदतों की तरह 
छुटकारा पाया जाए 
ताकि जीवन जीने में सुविधा हो, 
प्रेम सोमरस भी नहीं 
जिसे सिर्फ़ देवता ही ग्रहण करें 
क्योंकि वो सर्वोच्च हैं 
और इसे पाने के अधिकारी भी मात्र वही हैं, 
प्रेम की परिधि में 
जीवन की स्वतंत्रता है 
जीने की और स्वयं के अनुभूति की, 
प्रेम स्वाभाविक है, प्रेम प्राकृत है 
आत्मा परमात्मा-सा कुछ 
जो जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है 
जितना जीवित रहने के लिए प्राण-वायु, 
आकाश-सा विस्तार 
धरती-सी स्थिरता 
फूलों-सी कोमलता 
प्रेम का प्राथमिक परिचय है।   

- जेन्नी शबनम (14. 2. 2012)
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17 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

मस्त ||

vidya ने कहा…

बहुत अच्छी तरह परिभाषित किया आपने इस नन्हे से, ढाई आखर के शब्द को...
या कहूँ इस असीमित भावना को..

शुभकामनाएँ जेन्नी जी..

mridula pradhan ने कहा…

फूलों सी कोमलता
प्रेम का प्राथमिक परिचय है !
is parichay ne mugdh kar diya.....

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर परिचय प्रेम का ........

नीरज गोस्वामी ने कहा…

प्रेम स्वाभाविक है
प्रेम प्राकृत है
आत्मा परमात्मा सा कुछ
जो जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है
जितना जीवित रहने के लिए प्राण वायु,

वाह...वाह...वाह...बहुत अच्छी बात कही है आपने...बधाई स्वीकारें

नीरज

विभूति" ने कहा…

प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति........

Nirantar ने कहा…

prem to bas prem hai
tan se zyaadaa
man mein hai

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत अच्छी पंक्तियाँ ,सुंदर प्रस्तुति

MY NEW POST ...कामयाबी...

सहज साहित्य ने कहा…

आज के दिन आपने प्रेम की सच्ची परिभाषा प्रस्तुत कर दी , वह यह है कि प्रेम किसी परिभाष में नहीं बँधता । कबीर ने तो यहाँ तक कह दिया था -''प्रेम न बाड़ी ऊपजै , प्रेम न हाट बिकाय । राजा परजा जेहि रुचै सीस देय ले जाय ॥'' आपकी ये पंक्तियाँ सच्छा स्वरूप प्रसुतुत कर देती है-
पर प्रेम तो हर परिभाषा से परे है
जिसका न रूप
न आकार
बस महसूस करना ही एक मात्र
प्रेम में होने की संतुष्ट व्याख्या है,
प्रेम आदत नहीं
जिससे अन्य आदतों की तरह
छुटकारा पाया जाए
ताकि जीवन जीने में सुविधा हो,
प्रेम सोमरस भी नहीं
जिसे सिर्फ देवता ही ग्रहण करें
क्योंकि वो सर्वोच्य हैं
और इसे पाने के अधिकारी भी मात्र वही हैं,
प्रेम की परिधि में

रश्मि प्रभा... ने कहा…

प्रेम रास्ता नहीं , मंजिल है - हर रुकावटों से परे

***Punam*** ने कहा…

महसूस करो तो सब कुछ है,,,,
सुन्दर अभिव्यक्ति...

सदा ने कहा…

वाह ....बहुत खूब ।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

आकाश सा विस्तार
धरती सी स्थिरता
फूलों सी कोमलता
प्रेम का प्राथमिक परिचय है !
prem ki komal paribhasha.. pyari si rachna...!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सच्ची परिभाषा.... सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

prem ki koi paribhasha nahi ..prem niswarth hei ...

वाणी गीत ने कहा…

आकाश सा विस्तार
धरती सी स्थिरता
फूलों सी कोमलता
प्रेम का प्राथमिक परिचय है !!

हाँ , प्रेम इससे आगे भी बहुत है !

Nidhi ने कहा…

रेम स्वाभाविक है
प्रेम प्राकृत है
आत्मा परमात्मा सा कुछ
जो जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है
जितना जीवित रहने के लिए प्राण वायु................बहुत सही कहा,आपने.