शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

449. समय-रथ (समय पर 4 हाइकु) पुस्तक 53

समय-रथ 

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1.
रोके न रुके 
अपनी चाल चले 
समय-रथ। 

2.
न देख पीछे 
सब अपने छूटे
यही है सच। 

3.  
नहीं फूटता 
सदा भरा रहता
दुःखों का घट।   

4.
स्वीकार किया 
ज़िन्दगी से जो मिला 
नहीं शिकवा। 

- जेन्नी शबनम (24. 3. 2014)
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11 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

-सुंदर रचना...
आपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 14/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की ९५ वीं बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत बढिया प्रस्तुति.. हायकू

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (14-04-2014) के "रस्में निभाने के लिए हैं" (चर्चा मंच-1582) पर भी होगी!
बैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Satish Saxena ने कहा…

बेहद प्रभावशाली !
बधाई !

Asha Joglekar ने कहा…

जिंदगी से जो मिलता है उसे स्वीकारना ही नियती है हमारी। पर दुख के साथ सुखों के कण क्षण बी आते हैं जो लाते हैं मुस्कुराहट होटों पर।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उम्दा हाइकू ...!
RECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर ।


Onkar ने कहा…

सुन्दर हाइकु

रश्मि शर्मा ने कहा…

सभी हाइकु पसंद आए...शुक्रि‍या

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समय को बाखूबी चंद शब्दों में बाँधा है ... लाजवाब ...