नन्हा बचपन रूठा बैठा है
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अलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा बचपन छुपा बैठा है
मुझसे डरकर मुझसे ही रूठा बैठा है।
पहली कॉपी पर पहली लकीर
पहली कक्षा की पहली तस्वीर
छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर
सब हैं लिपटे, साथ यूँ दुबके
ज्यों डिब्बे में बन्द ख़ज़ाना
लूट न ले कोई पहचाना।
लूट न ले कोई पहचाना।
जैसे कोई सपना टूटा बिखरा है
मेरा बचपन मुझसे हारा बैठा है
अलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
ख़ुद को जान सकी न अबतक
ख़ुद को पहचान सकी न अबतक
जब भी देखा ग़ैरों की नज़रों से
सब कुछ देखा और परखा भी
अपना आप कब गुम हुआ
इसका न कभी गुमान हुआ।
ख़ुद को खोकर ख़ुद को भूलकर
पल-पल मिटने का आभास हुआ
पर मन के अन्दर मेरा बचपन
मेरी राह अगोरे बैठा है
अलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
देकर शुभकामनाएँ मुझको
मेरा बचपन कहता है आज
अरमानों के पंख लगा
वह चाहे उड़ जाए आज
जो-जो छूटा मुझसे अब तक
जो-जो बिछुड़ा देकर ग़म
सब बिसराकर, हर दर्द को धकेलकर
जा पहुँचूँ उम्र के उस पल पर
जब रह गया था वह नितान्त अकेला।
सबसे डरकर सबसे छुपकर
अलमारी के ख़ाने में मेरा बचपन
मुझसे आस लगाए बैठा है
आलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
बोला बचपन चुप-चुप मुझसे
अब तो कर दो आज़ाद मुझको
गुमसुम-गुमसुम जीवन बीता
ठिठक-ठिठक बचपन गुज़रा
शेष बचा है अब कुछ भी क्या
सोच-विचार अब करना क्या
अन्त से पहले बचपन जी लो
अब तो ज़रा मनमानी कर लो
मेरा बचपन ज़िद किए बैठा है
आलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
आज़ादी की चाह भले है
फिर से जीने की माँग भले है
पर कैसे मुमकिन आज़ादी मेरी
जब तुझपर है इतनी पहरेदारी
तू ही तेरे बीते दिन है
तू ही तो अलमारी है
जिसके निचले ख़ाने में
सदियों से मैं छुपा बैठा हूँ।
तुझसे दबकर तेरे ही अन्दर
कैसे-कैसे टूटा हूँ, कैसे-कैसे बिखरा हूँ
मैं ही तेरा बचपन हूँ और मैं ही तुझसे रूठा हूँ
हर पल तेरे संग जिया
पर मैं ही तुझसे छूटा हूँ
अलमारी के निचले ख़ाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
-जेन्नी शबनम (16.11.2015)
(अपनी जन्मतिथि पर)
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