जग में क्या रहता है
(9 माहिया)
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1.
जीवन ये कहता है
काहे का झगड़ा
जग में क्या रहता है!
2.
तुम कहते हो ऐसे
प्रेम नहीं मुझको
फिर साथ रही कैसे!
3.
मेरा मौन न समझे
कैसे बतलाऊँ
मैं टूट रही कबसे!
4.
तुम सब कुछ जीवन में
मिल न सकूँ फिर भी
रहते मेरे मन में!
5.
मुझसे सब छूट रहा
उम्र ढली अब तो
जीवन भी टूट रहा!
6.
रिश्ते कब चलते यूँ
शिकवे बहुत रहे
नाते जब जलते यूँ!
7.
सपना जो टूटा है
अँधियारा दिखता
अपना जो रूठा है!
8.
दुनिया का कहना है
सुख-दुख जीवन है
सबको ही बहना है!
9.
कहती रो के धरती
न उजाड़ो मुझको
मैं निर्वसना मरती!
- जेन्नी शबनम (6. 12. 2016)
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4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-12-2016) को गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-12-2016) को गांवों की बात कौन करेगा" (चर्चा अंक-2566) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही अच्छे विचार।
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