मुल्कों की रीत है
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कैसा अजब सियासी खेल है, होती मात न जीत है
नफ़रत का कारोबार करना, हर मुल्कों की रीत है।
मज़हब व भूख पर, टिका हुआ सारा दारोमदार है
ग़ैरों की चीख-कराह से, रचता ज़ेहादी गीत है।
ज़ेहन में हिंसा भरा, मानव बना फौलादी मशीन
दहशत की ये धुन बजाते, दानव का यह संगीत है।
संग लड़े जंगे-आज़ादी, भाई-चारा याद नहीं
एक-दूसरे को मार-मिटाना, बची इतनी प्रीत है।
हर इंसान में दौड़ता लाल लहू, कैसे करें फ़र्क
यहाँ अपना पराया कोई नहीं, 'शब' का सब मीत है।
- जेन्नी शबनम (17. 7. 2017)
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