मंगलवार, 15 अगस्त 2017

555. कैसी आज़ादी पाई (स्वतंत्रता दिवस पर 4 हाइकु) पुस्तक - 91, 92

कैसी आज़ादी पाई  

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1.  
मन है क़ैदी,  
कैसी आज़ादी पाई?  
नहीं है भायी   

2.  
मन ग़ुलाम  
सर्वत्र कोहराम,  
देश आज़ाद   

3.  
मरता बच्चा  
मज़दूर, किसान,  
कैसी आज़ादी?  

4.  
हूक उठती,  
अपने ही देश में  
हम ग़ुलाम   

- जेन्नी शबनम (15. 8. 2017)  
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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-08-2017) को "कैसी आज़ादी पाई" (चर्चा अंक 2698) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

'एकलव्य' ने कहा…

अति सुन्दर ! क्रांतिकारी हाइकु आभार ,"एकलव्य"

बेनामी ने कहा…

नाम वही, काम वही लेकिन हमारा पता बदल गया है। आदरणीय ब्लॉगर आपने अपने ब्लॉग पर iBlogger का सूची प्रदर्शक लगाया हुआ है कृपया उसे यहां दिए गये लिंक पर जाकर नया कोड लगा लें ताकि आप हमारे साथ जुड़ें रहे।
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Onkar ने कहा…

सुन्दर हाइकु

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

वास्तविकता से लबरेज़ नुकीले हाइकु। चंद शब्दों में प्रस्तुत हुई सम्पूर्ण तस्वीर। वाह !