ख़ाली हाथ जाना है
*******
ख़ाली हाथ हम आए थे
ख़ाली हाथ ही जाना है।
तन्हा-तन्हा रातें गुज़री
तन्हा दिन भी बिताना है।
समझ-समझ के समझे क्यों
समझ से दिल कब माना है।
क़तरा-क़तरा जीवन छूटा
क़तरा-क़तरा सब पाना है।
बूँद-बूँद बिखरा लहू
बूँद-बूँद मिट आना है।
झम-झम बरसी आँखें उसकी
झम-झम जल ये चखाना है।
'शब' को याद मत करो तुम
उसका गया ज़माना है।
- जेन्नी शबनम (16. 6. 2020)
_____________________
13 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को "उलझा माँझा" (चर्चा अंक-3735) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर सृजन।
बहुत ख़ूब ...
ख़ाली हाथ आना और जाना तो तय है पर जब तक नहि जाते तब तक बहुत कुछ रखना तो पड़ता है ...
बढ़िया रचना
बहुत सुन्दर सृजन .
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय दीदी .
समझ समझ के समझे कब , समझ के दिल कब माना है ..वाह
बेहतरीन अभिव्यक्ति
अति उत्तम लाजवाब ,प्यारी सी रचना
शब नम का कभी जाता नहीं ज़माना,
उसे तो हर साँझ के साथ है आना।
'शब' को याद मत करो तुम
उसका गया जमाना है !
- बढ़िया प्रस्तुति
'शब' को याद मत करो तुम
उसका गया जमाना है !
- बढ़िया प्रस्तुति
उम्दा सृजन
एक टिप्पणी भेजें