बुधवार, 9 सितंबर 2020

684. बारहमासी (पुस्तक-नवधा)

बारहमासी

*** 

रग-रग में दौड़ा मौसम   
रहा न मन अनाड़ी   
मौसम का है खेल सब   
हम ठहरे इसके खिलाड़ी।   

आँखों में भदवा लगा   
जब आया नाचते सावन   
जीवन में उगा जेठ   
जब सूखा मन का आँगन।   

आया फगुआ झूम-झूमके   
तब मन हो गया बैरागी   
मुँह चिढ़ाते कार्तिक आया   
पर जली न दीया-बाती।   

समझो बातें ऋतुओं की   
कहे पछेया बासन्ती   
मन चाहे बेरंग हो पर   
रूप धरो रंग नारंगी।   

पतझड़ हो या हरियाली   
हँसी हो बारहमासी   
मन में चाहे अमावस हो   
जोगो सदा पूरनमासी।   

-जेन्नी शबनम (9.9.2020) 
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12 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

Kamini Sinha ने कहा…

पतझड़ हो या हरियाली
हँसी हो बारहमासी
मन में चाहे अमावस हो
जोगो सदा पूरनमासी।
बहुत खूब,सुंदर सृजन,सादर नमस्कार शबनम जी

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 11-09-2020) को "मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ " (चर्चा अंक-3821) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

"मीना भारद्वाज"

World of neeta ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना संसार है आपका।
यह बारहमासी अदभुत है।
बधाई व शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... हर मौसम का अपना भाव होता है ... कुछ कहता है अज्नाजे ही मौसम जो जीवन में रचित रहता है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर और सारगर्भित रचना।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना आदरणीया

Onkar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

Good night images in Marathi ने कहा…

Very nice

Alaknanda Singh ने कहा…

वाह...अमावस से पूरनमासी तक की कहानी बहुत खूब ल‍िखी शबनम जी

Sudha Devrani ने कहा…

हर मौसम और जीवन का अद्भुत योग....पूर्णमासी से अमावस तक हंसी हो बारहमासी..
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

बेहतरीन