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काश! हवा या धुआँ बनकर
आसमान में जाती
चाँद की चाँदनी में उन तारों को ढूँढती
जो बचपन में मेरे पापा बन गए
और अब माँ भी उन्हीं का हिस्सा है।
न जाने वहाँ पापा कैसे होंगे
इतने साल अकेले कैसे रहे होंगे?
नहीं-नहीं! वे वहाँ किताबें पढ़ते होंगे
वहाँ से देखते होंगे कि उनके सिद्धान्तों को
हमने कितना जाना कितना अपनाया
वे बहुत बूढ़े हो गए होंगे
उम्र तो तारों की भी बढ़ती होगी
क्या मुझे याद करते होंगे?
वे तो मुझे पहचानेंगे भी नहीं
जब वे गए मैं छोटी बच्ची थी
जब पहचानेंगे तो क्या अब भी
गोद में बिठाकर दुलार करेंगे?
बचपन की तरह अब भी रूठने पर मनाएँगे?
उसी तरह प्यार करेंगे?
पर माँ तो पहचानती है
अभी-अभी तो गई है
ये विदाई तो अभी बहुत नई है
मुझे देखते ही बड़े लाड़ से गले लगाएगी
रोएगी, मुझे ढाढ़स देगी
मेरे अनाथ हो जाने पर
ख़ुद की क़िस्मत पर नाराज़ होगी
रुँधी हुई उसकी आवाज़ होगी
वह बताएगी कि कैसे अन्तिम साँस लेते समय
चारों तरफ़ मुझे ढूँढ़ रही थी
एक अन्तिम बार देखने को तड़प रही थी।
कितनी बेबस रही होगी
कितना कुछ कहना चाहती होगी
मेरे अकेलेपन के ग़म में रोई होगी
कितनी आवाज़ दी होगी मुझे
पर साँसे घुट रही होंगी
आवाज़ हलक में अटक रही होगी
वह रो रही होगी, छटपटा रही होगी
मेरी बहुत याद आ रही होगी
यम से मिन्नत करती होगी कि ज़रा-सा वक़्त दे-दे
बेटी से एक बार तो मिल लेने दे।
वक़्त तो सदा का असंवेदनशील
न पापा के समय मेरे लिए रुका
न मम्मी के लिए
अपनी मनमानी कर गया
मम्मी चली गई
बिना कुछ कहे चली गई
तारों में गुम हो गई।
अब कोई नहीं जो मेरा मन समझेगा
अब कोई नहीं जो मेरा ग़म बाँटेगा
मेरे हर दर्द पर मुझसे ज़्यादा तड़पेगा
मेरी फ़िक्र में हर समय बेहाल रहेगा
न पापा थे न मम्मी है
दोनों अलविदा कह गए
जिनको जाते वक़्त मैंने न सुना न देखा।
काश! तुम दोनों तारों के झुरमुट में मिल जाओ
एक बार गले लगा जाओ
पापा के बिना जीने का हौसला तुमने दिया था
अब तुम्हारे बिना जीने का हौसला कौन देगा माँ?
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना।
दिल से कही गई बात दिल को छू ही जाती है जेनी जी और जिसके लिए है, उसके दिल तक पहुँच भी जाती है ।
माता पिता के लिए मन में इन भावनाओं का उठाना स्वाभाविक है ... . माता पिता को नमन ...
भावपूर्ण प्रस्तुति
बहुत सुंदर
सहज ही उठती भावनाएं हैं मन की ... माता पिता की यादें उद्वेलित कर जाती हैं मन को ....
मेरा नमन ...
नमन
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