बुधवार, 25 मार्च 2009

43. अपंगता (क्षणिका)

अपंगता

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एक अपंगता होती तन की
जिसे मिलती बहुत करुणा, जग की  
एक अपंगता होती मन की
जिसे नहीं मिलती संवेदना, जग की  
तन की व्यथा दुनिया जाने 
मन की व्यथा कौन पहचाने?
तन की दुर्बलता का है समाधान
विकल्प भी हैं मौजूद हज़ार,
मन की दुर्बलता का नहीं कोई विकल्प
बस एक समाधान- प्यार, प्यार और प्यार। 

- जेन्नी शबनम (अक्टूबर, 2006)
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1 टिप्पणी:

खोरेन्द्र ने कहा…

बस एक समाधान...प्यार,प्यार और प्यार !!

....कहां से लाऊ वह असीम प्यार ...|
मुझे इस कविता से लगाव सा हो गया है ..क्योकि मै मनो -विज्ञान का आजीवन विद्यार्थी हू ..शायद इसलीये ..आपकी कल्पना की मै प्रशंसा करता हू