दुआ
*******
कोई शख्स ज़ख़्म देता, कुरेदकर नासूर बनाता
फिर कहता- "अल्लाह! उसे जन्नत बख़्श दो!"
क्या कहूँ उस ज़ालिम को
क्या कहूँ उस ज़ालिम को
अज़ीज़ या रक़ीब?
जिसे जहन्नुम भी जन्नत-सा लगे
जिसे ग़ैरों के दर्द में आराम मिले,
जिसे जहन्नुम भी जन्नत-सा लगे
जिसे ग़ैरों के दर्द में आराम मिले,
जाने ये कौन सी दुआ है
जो दोज़ख़ की आग में झोंकती है
और कहती- ''जाओ जन्नत पाओ, सुकून पाओ!''
और कहती- ''जाओ जन्नत पाओ, सुकून पाओ!''
- जेन्नी शबनम (23. 3. 2009)
_____________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें