रविवार, 5 जुलाई 2009

69. 'शब' की मुराद (अनुबन्ध/तुकान्त)

'शब' की मुराद

***

'शब' जब 'शव' बन जाए, उसको कुछ वक़्त रहने देना
बेदस्तूर सही, सहर होने तक ठहरने देना

उम्र गुज़ारी है 'शब' ने अँधेरों में
रोशनी की एक नज़र पड़ने देना

डरती है बहुत 'शब' आग में जलने से
दुनियावालो, उसे दफ़न करने देना 

मज़हब का सवाल जो उठने लगे तो
सबको वसीयत 'शब' की पढ़ने देना 

ढक देना माँग की सिन्दूरी लाली को
वजह-ए-वहशत 'शब' को न बनने देना

जगह नहीं दे मज़हबी जब दफ़नाने को
घर में अपने, 'शब' की क़ब्र बनने देना

तमाम ज़िन्दगी बसर हुई तन्हा 'शब' की
जश्न भारी औ मजमा भी लगने देना

अश्क़ नहीं फूलों से सजाना 'शब' को
'शब' के मज़ार को कभी न ढहने देना

'शब' की मुराद, पूरी करना मेरे हमदम
'शब' के लिए, कोई मर्सिया न पढ़ने देना

-जेन्नी शबनम (नवम्बर, 1998)
('ज़ख़्म' फ़िल्म से प्रेरित)  
_______________________

4 टिप्‍पणियां:

खोरेन्द्र ने कहा…

najm me aapne ek sachche vykti ko apne shbdo ke madhyam se prastut kiya hae

bahut sundar

प्रिया ने कहा…

nazm bahut achchi lagi zenny ji.... Infact ye picture bhi bahut achchi thi......Pooja Bhatt ne apne kirdaar ke saath poora nyaaya kiya tha..

jitinindian ने कहा…

kuch kehne yogya na mere paas shabd hain, na main surya ko diya dikhane ki gustaakhi karna chahta hoon. sirf itna kahunga ki aapke rachna ka marm dil mein bahut gehra utar gaya jenny ji...

बेनामी ने कहा…

"lamho ka safar " veryyyyyyyyyyy nice