मंगलवार, 1 सितंबर 2009

81. ख़ुदा बना दिया (तुकान्त)

ख़ुदा बना दिया

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मिज़ाज कौन पूछे, जब ख़ुद नासाज़ हो
ये सोच हमने, ख़ुद ही सब्र कर लिया 

इश्क़ का जुनून, कैसे कोई जाने भला
वो जो मोहब्बत से, महरूम रह गया 

दाख़िल ही नहीं कभी, बेदख़ल कैसे हों
फिर भी ये सुन-सुन, ज़माना गुज़र रहा

मायूसी से बहुत, थककर पुकारा उसे
बादलों में गुम वो, फिर निराश कर गया 

तरसते लोग जहाँ में, एक ख़ुदा के वास्ते
'शब' ने जाने कितनों को, ख़ुदा बना दिया 

- जेन्नी शबनम (31. 8. 2009)
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2 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इश्क का जुनून,
कैसे कोई जाने भला,
वो जो मोहब्बत से,
महरूम रह गया !
.......bahut khoob

pawan arora ने कहा…

दाखिल हीं नहीं कभी,
बेदख़ल कैसे हों,
फिर भी ये सुन-सुन,
ज़माना गुज़र रहा !
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sabse pahle mera parnaam sawikaar kare main chala aya kuch khayalo mai kho gaya khud ko paane mai...bahut khub likha jise padh kho sa gaya main aap ki laikhni umada hai mujhe padhne ko mili iske liye shukria aap ki laikhni aur aapka