मेरा वक़्त : तुम्हारा वक़्त
*******
वक़्त की कमी जीना भूला देती है
वक़्त की कमी जीना सीखा देती है।
*******
वक़्त की कमी जीना भूला देती है
वक़्त की कमी जीना सीखा देती है।
देखो न, पल भर में सब कुछ बदल जाता है
नहीं बदलता तो कभी-कभी ठहरा हुआ वक़्त।
नहीं बदलता तो कभी-कभी ठहरा हुआ वक़्त।
अजीब बात है न?
कभी वक़्त की तेज़ रफ़्तार
कभी शिथिल क्षत-विक्षत वक़्त।
कभी वक़्त की तेज़ रफ़्तार
कभी शिथिल क्षत-विक्षत वक़्त।
हाँ, तुम भी तो वक़्त के साथ बदलते रहे हो
कभी इतना ढेर सारा वक़्त कि पूछते हो -
खाना खाया, दवा खाई, सुई लिया?
आज की एक ताज़ा ख़बर सुनो न!
देश दुनिया के हालात पर गहन चर्चा करते -
अकाल, अशिक्षा, गरीबी, महँगाई, बेरोज़गारी,
सैनिकों और किसानों की आत्महत्या,
पड़ोसी देश की कूटनीति, देश की आतंरिक अव्यवस्था,
आतंकवाद, अलगाववाद, क्षेत्रीयतावाद, नक्सलवाद,
राजनितिक पार्टियों का तमाशा,
दहेज़-हत्या, भ्रूण-हत्या, बलात्कार,
धर्म पर हमारा अपना-अपना दृष्टिकोण।
बचपन के किस्से, दोस्तों की गाथा,
बच्चों का भविष्य, रिश्तेदारों के स्वार्थपरक सम्बन्ध,
गुज़रे वक़्त की खट्टी-मीठी यादें,
बहुत कुछ बाँटते कभी-कभी तुम।
बच्चों का भविष्य, रिश्तेदारों के स्वार्थपरक सम्बन्ध,
गुज़रे वक़्त की खट्टी-मीठी यादें,
बहुत कुछ बाँटते कभी-कभी तुम।
कभी इतना भी वक़्त नहीं कि पूछो -
मैं ज़िंदा भी हूँ!
क्या मैं जिंदा हूँ?
हाँ, शायद, ज़िंदा ही तो हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारे वक़्त का इंतज़ार करती रहती हूँ
वक़्त की परेशानी सदा तुम्हारी है, मेरी नहीं।
मैं तो वक़्त के साथ ठहरी हुई हूँ
जहाँ छोड़ जाते रुकी रहती हूँ
जितना कहते सुनती जाती हूँ
जितना पूछते बताती जाती हूँ
जो चाहते करती जाती हूँ।
क्योंकि मेरे वक़्त की उपलब्धता तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण नहीं
न ही मेरे वक़्त और मेरी बात की कोई अहमियत है तुम्हारे लिए।
न ही मेरे वक़्त और मेरी बात की कोई अहमियत है तुम्हारे लिए।
तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए आई हूँ
तुम्हारी सुविधा केलिए, तुम्हारा ख़ाली वक़्त बाँटने
अपना वक़्त नहीं।
तुम्हारी सुविधा केलिए, तुम्हारा ख़ाली वक़्त बाँटने
अपना वक़्त नहीं।
- जेन्नी शबनम (8. 12. 2009)
____________________________________
mera waqt : tumhaara waqt
*******
waqt ki kami jina bhoola deti hai,
waqt ki kami jeena bhi seekha deti hai.
dekho na, pal bhar mein sab kuchh badal jata hai
nahin badalta to kabhi kabhi thahraa hua waqt.
ajeeb baat hai na?
kabhi waqt ki tez raftaar
kabhi shithil kshat-vikshat waqt.
haan, tum bhi to waqt ke saath badalte rahe ho
kabhi itna dher saara waqt ki puchhte ho -
khaana khaaya, dawaa khaaya, sui liya ?
aaj ki ek taazaa khabar suno na !
desh duniya ke haalaat par gahan charchaa karte -
akaal, ashiksha, gareebi, mahangaai, berozgaari,
sainikon aur kisaano ki aatm-hatya,
padosi desh ki kootniti, desh ki aantarik avyawastha,
aatank-waad, algaaw-waad, kshetriyata-waad, naksal-waad,
raajnitik paartiyon ka tamasha,
dahej-hatya, bhrun-hatya, balatkaar,
dharm par hamara apna apna drishtikon.
bachpan ke kisse, doston ki gaatha,
bachchon ka bhawishya, rishtedaaron ke swaarthparak sambandh,
guzre waqt ki khatti-mithi yaaden,
bahut kuchh baantate kabhi-kabhi tum.
kabhi itna bhi waqt nahin ki puchho -
main zinda bhi hoon.
kya main zinda hoon ?
haan, shaayad, zinda hin to hoon
kyonki main tumhaare waqt ka intzaar karti rahti hun
waqt ki pareshaani sadaa tumhaari hai, meri nahi.
main to waqt ke sath thahri hui hoon
jahan chhod jate ruki rahti hoon
jitna kahte sunti jati hoon
jitna puchhte bataati jati hoon
jo chahte karti jati hoon.
kyonki mere waqt ki uplabdhta tumhare liye mahatwapurn nahin,
na hi mere waqt aur meri baat ki koi ahmiyat hai tumhare liye.
tumhaare paas, tumhaare saath, tumhaare liye aai hoon
tumhaari suwidha keliye, tumhara khaali waqt baantne
apnaa waqt nahin.
- Jenny Shabnam (8. 12. 2009)
________________________________________
*******
waqt ki kami jina bhoola deti hai,
waqt ki kami jeena bhi seekha deti hai.
dekho na, pal bhar mein sab kuchh badal jata hai
nahin badalta to kabhi kabhi thahraa hua waqt.
ajeeb baat hai na?
kabhi waqt ki tez raftaar
kabhi shithil kshat-vikshat waqt.
haan, tum bhi to waqt ke saath badalte rahe ho
kabhi itna dher saara waqt ki puchhte ho -
khaana khaaya, dawaa khaaya, sui liya ?
aaj ki ek taazaa khabar suno na !
desh duniya ke haalaat par gahan charchaa karte -
akaal, ashiksha, gareebi, mahangaai, berozgaari,
sainikon aur kisaano ki aatm-hatya,
padosi desh ki kootniti, desh ki aantarik avyawastha,
aatank-waad, algaaw-waad, kshetriyata-waad, naksal-waad,
raajnitik paartiyon ka tamasha,
dahej-hatya, bhrun-hatya, balatkaar,
dharm par hamara apna apna drishtikon.
bachpan ke kisse, doston ki gaatha,
bachchon ka bhawishya, rishtedaaron ke swaarthparak sambandh,
guzre waqt ki khatti-mithi yaaden,
bahut kuchh baantate kabhi-kabhi tum.
kabhi itna bhi waqt nahin ki puchho -
main zinda bhi hoon.
kya main zinda hoon ?
haan, shaayad, zinda hin to hoon
kyonki main tumhaare waqt ka intzaar karti rahti hun
waqt ki pareshaani sadaa tumhaari hai, meri nahi.
main to waqt ke sath thahri hui hoon
jahan chhod jate ruki rahti hoon
jitna kahte sunti jati hoon
jitna puchhte bataati jati hoon
jo chahte karti jati hoon.
kyonki mere waqt ki uplabdhta tumhare liye mahatwapurn nahin,
na hi mere waqt aur meri baat ki koi ahmiyat hai tumhare liye.
tumhaare paas, tumhaare saath, tumhaare liye aai hoon
tumhaari suwidha keliye, tumhara khaali waqt baantne
apnaa waqt nahin.
- Jenny Shabnam (8. 12. 2009)
________________________________________
17 टिप्पणियां:
शानदार और मनमोहक।
वक़्त ही तो है, जो जीवन की पृष्ठभूमि तैयार करता चलता है......
"वक़्त की कमी जीना भूला देती है, वक़्त की कमी जीना भी सिखा देती है !" बिलकुल सही.
"तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए आई हूँ,
तुम्हारा खाली वक़्त बाँटने, अपना नहीं...!"
अति सुंदर, हमारे लिए सोचनीय. बाकी रश्मि प्रभा जी ने कह दिया है शुभकामनाएं - राकेश कौशिक
क्योंकि मेरे वक़्त की उपलब्धता तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण नहीं,
न हीं मेरे वक़्त और मेरी बात की कोई अहमियत है तुम्हारे लिए !
जेन्नी जी औरतें रिश्तों को जीती नहीं ढोती हैं .....आपकी कविता दर्द भी कुछ ऐसा ही है ......!!
मनोज जी,
सादर आभार आपका मेरी रचना पसंद करने केलिए!
रश्मि जी,
बिल्कुल सही कहा, ये वक़्त हीं है जो हमारी ज़िन्दगी को संचालित भी करता है| बहुत आभार!
कौशिक जी,
बहुत आभार कि आपने मेरी रचना के सार को समझा, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है, धन्यवाद!
जेन्नी जी वक्त की अहमियत को जिन शब्दों में आपने लिखा है उसे सिर्फ़ पढ़ते रहना ही अच्छा लगता है|मैं ख़ुद को इस काबिल नही समझता हूँ की आपकी रचना की व्याख्या करू और" वाह क्या लिखा है "जैसे शब्द कहू |अआप्को पढ़ते हुए हमेशा कुछ सिखने को मिलता है
हरकीरत हीर जी,
आप मेरी रचना को पसंद किये बहुत आभार आपका| एक बात कहना चाहूंगी कि औरतें रिश्तों को सिर्फ जीना चाहती हैं, ये अलग बात कि समाज और वक़्त कि नाइंसाफी की वजह से कभी कभी रिश्तों को सिर्फ ढ़ोने को मजबूर हो जाती हैं| आपने सही कहा इस कविता की औरत का दर्द है कि वो रिश्ते को जी नहीं रही ढ़ो रही है| आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद!
गौतम सचदेव जी,
आप मेरी रचना तक आये ख़ुशी हुई| ''वाह क्या बात'' है जैसे शब्द कहने का अर्थ ही है कि महज़ औपचारिकता केलिए पढ़ा गया है| अगर कोई रचना को आत्मसात करता है तो पाठक के कहने के ढंग से समझ आ जाता| आपने मेरी रचना की जिस तरह से सराहना की है मेरा और मेरी रचना का सम्मान है| आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ, धन्यवाद!
सुन्दर रचना...
pain subtly expressed!
beautiful!!!
एक बेहद सार्थक अभिव्यक्ति।
sunder gahan bhav ...
हमारा वक्त कब हमारा रहा ... सारा वक्त दूसरों के लिए है .. सुन्दर अभिव्यक्ति
कितना सुन्दर ...!..जैसे चित्र सा बना डाला कविता ने..
kalamdaan.blogspot.com
तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए आई हूँ
तुम्हारी सुविधा केलिए, तुम्हारा खाली वक़्त बाँटने
अपना वक़्त नहीं ।
एकदम स्ट्रेट...बहुत खूब...
एक टिप्पणी भेजें